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565. ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के आठ बोलों में सादि कितने और अनादि कितने ?
उ. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान सादि-अनादि दोनों हैं (अभव्य की अपेक्षा अनादि और भव्य की अपेक्षा सादि)। शेष छह बोल सादि है ।
566. बाईस परीषह में ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से कितने परीषह ? उ. दो- प्रज्ञा और अज्ञान ।
567. श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यक्त्वी और मिथ्यात्वी कितने श्रुतका अभ्यास कर सकते हैं?
उ. श्रुत ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यक्त्वी के श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है और मिथ्यात्वी के श्रुत अज्ञान । सम्यक्त्वी उत्कृष्ट चौदह पूर्व का अभ्यास करता है और मिथ्यात्वी देशन्यून दस पूर्व तक का ।
124 कर्म-दर्शन