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भगवती सूत्र
श. १ : उ. २,३ : सू. ११५-१२३ करता है। मनुष्य-आय का भी बन्ध करता है और देव-आयु का भी बन्ध करता है। नैरयिक-आयु का बन्ध करने वाला जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कर्षतः पल्योपम के असंख्येय भाग का बन्ध करता है। तिर्यग्योनिक-आयु का बन्ध करने वाला जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षतः पल्योपम के असंख्येय भाग का बन्ध करता है। मनुष्य-आयु का बंध करने वाला जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षतः पल्योपम के असंख्येय भाग का बन्ध करता है। देव-आयु का बन्ध करने वाला जघन्यतः दश हजार वर्ष और उत्कर्षतः पल्योपम के असंख्येय भाग का बन्ध करता है। ११६. भन्ते! नैरयिक-असंज्ञी-आयु, तिर्यग्योनिक-असंज्ञी-आयु, मनुष्य-असंज्ञी-आयु और
देव-असंज्ञी-आयु, इनमें कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है? गौतम! देव की असंज्ञी-आयु सबसे अल्प है। मनुष्य-असंज्ञी-आयु उससे असंख्येय-गुणा है, तिर्यग्योनिक-असंज्ञी-आयु उससे असंख्येय-गुणा है और नैरयिक-असंज्ञी-आयु उससे
असंख्येय-गुणा है। ११७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
तीसरा उद्देशक कांक्षामोहनीय-पद ११८. भन्ते! क्या जीवों के कांक्षामोहनीय-कर्म कृत होता है?
हां, कृत होता है। ११९. भन्ते! क्या १. देश के द्वारा देश कृत होता है ? २. देश के द्वारा सर्व कृत होता है? ३. सर्व के द्वारा देश कृत होता है? ४. सर्व के द्वारा सर्व कृत होता है? गौतम ! १. देश के द्वारा देश कृत नहीं होता। २. देश के द्वारा सर्व कृत नहीं होता। ३. सर्व
के द्वारा देश कृत नहीं होता। सर्व के द्वारा सर्व कृत होता है। १२०. भन्ते! क्या नैरयिक जीवों के कांक्षामोहनीय-कर्म कृत होता है?
हां, कृत होता है। १२१. भन्ते! क्या १. देश के द्वारा देश कृत होता है? २. देश के द्वारा सर्व कृत होता है? ३. सर्व के द्वारा देश कृत होता है? ४. सर्व के द्वारा सर्व कृत होता है? गौतम ! १. देश के द्वारा देश कृत नहीं होता। २. देश के द्वारा सर्व कृत नहीं होता। ३. सर्व के द्वारा देश कृत नहीं होता। ४. सर्व के द्वारा सर्व कृत होता है। १२२. (असुरकुमारों से लेकर) वैमानिकों तक सभी दण्डक इसी प्रकार वक्तव्य हैं। १२३. भन्ते! क्या जीवों ने कांक्षामोहनीय-कर्म किये थे? हां, किये थे।
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