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(४) रचना - शैलो
" प्रस्तुत आगम में ३६ हजार व्याकरणों का उल्लेख है। इससे पता चलता है कि इसकी रचना प्रश्नोत्तर की शैली में की गई थी। नंदी के चूर्णिकार ने बतलाया है कि गौतम आदि के द्वारा पूछे गए प्रश्नों तथा अपृष्ट प्रश्नों का भी भगवान् महावीर ने व्याकरण किया था।' वर्तमान आकार में आज भी यह प्रश्नोत्तर - शैली का आगम है। प्रश्नों की भाषा संक्षिप्त है और उनके उत्तर की भाषा भी संक्षिप्त है । 'से नूणं भंते' - इस भाषा में प्रश्न का और 'हंता गोयमा' - इस भाषा में उत्तर का आरम्भ होता है । " २
"कहीं-कहीं उत्तर के प्रारम्भ में केवल संबोधन का प्रयोग होता है, हंता का प्रयोग नहीं होता । ३
"उद्देशक की पूर्ति पर भगवान् द्वारा दिए गए उत्तर की स्वीकृति और विनम्र वन्दना का उल्लेख इस प्रकार मिलता है
'भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । इस प्रकार भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करते हैं, वन्दन - नमस्कार कर वे संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं।' ४५
(XLVII)
भगवती में जहां गंभीर तत्त्व विषयक निरूपण है, वहां दृष्टान्त, संवाद, जीवन- चरित्र आदि के रूप में रोचक तथा सहज-सरल प्रतिपादन भी अनेक स्थानों पर मिलता है । जैसे
“भन्ते ! क्या पहले अण्डा और फिर मुर्गी पैदा हुई ? क्या पहले मुर्गी और फिर अण्डा पैदा हुआ ?
रोह ! वह अण्डा कहां से पैदा हुआ ?
भगवन्! मुर्गी से।
वह मुर्गी कहां से पैदा हुई ?
भन्ते ! अण्डे से ।
रोह ! इसी प्रकार वही अण्डा है, वही मुर्गी है । ये पहले भी थे और आगे भी होंगे। ये दोनों शाश्वत भाव हैं। रोह ! यह अनानुपूर्वी है - अण्डे और मुर्गी में पूर्व-पश्चात् का क्रम नहीं है । ६
१.
२.
३.
नंदी चूर्णि सूत्र ८९, पृ. ६५'गौतमादिएहिं पुट्ठे अपुट्ठे वा जो पण्हो तव्वागरणं ।' अंगसुत्ताणि, भाग २, भगवई, १/ ११,१२ ।
वही, भगवई, १/१२,१३ ।
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५.
६.
भगवई (भाष्य), खण्ड १, १ / ५१, पृ.
४६ ।
वही, खण्ड १, भूमिका, पृ. २२ । भगवई (भाष्य), खण्ड १, १/२९५, पृ. १३१ ।