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श. ११ : उ. ९ : सू. ७६-७९
भगवती सूत्र उत्पन्न हुआ है, इस प्रकार इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं, उससे आगे द्वीप और समुद्र व्युच्छिन्न हैं। ७७. भंते! वह इस प्रकार कैसे है?
अयि गौतम! श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम से इस प्रकार कहा- गौतम! निरन्तर बेले-बेले (दो-दो दिन के उपवास) से दिशा-चक्रवाल तपःकर्म के द्वारा, आतापन-भूमि में दोनों भुजाएं ऊपर उठा कर सूर्य के सामने आतापना लेते हुए प्रकृति की भद्रता, प्रकृति की उपशान्तता, प्रकृति में क्रोध, मान, माया और लोभ की प्रतनुता, मृदु-मार्दव संपन्नता, आत्मलीनता और विनीतता के द्वारा किसी समय तदावरणीय कर्म का क्षयोपशम कर ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेषणा करते हुए उस शिव राजर्षि के विभंग नामक ज्ञान समुत्पन्न हुआ। पूर्ववत् सर्व वक्तव्य है। यावत् भण्ड को स्थापित किया, स्थापित कर हस्तिनापुर नगर के शृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों और मार्गों पर अनेक व्यक्तियों के सामने इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करता है-देवानुप्रिय! मुझे अतिशायी ज्ञान-दर्शन समुत्पन्न हुआ है, इस प्रकार इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं, उससे आगे द्वीप और समुद्र व्युच्छिन्न हैं। उस शिव राजर्षि के पास यह अर्थ सुनकर अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के शृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों और मार्गों पर अनेक व्यक्ति इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करते हैं देवानुप्रियो! शिव राजर्षि इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करते हैं देवानुप्रिय! मुझे अतिशायी ज्ञान-दर्शन समुत्पन्न हुआ है, इस प्रकार इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं, उससे आगे द्वीप और समुद्र व्युच्छिन्न हैं-वह मिथ्या है। गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करता हूं-इस प्रकार जम्बूद्वीप आदि द्वीप, लवण आदि समुद्र संस्थान से एक विधि-विधान–गोलवृत्त वाले हैं, विस्तार से अनेक विधिविधान-क्रमशः द्विगुण-द्विगुण विस्तार वाले हैं। इस प्रकार जैसे जीवाजीवाभिगम (३/ २५९) की वक्तव्यता है, यावत् आयुष्मन् श्रमण! इस तिर्यक्-लोक में स्वयंभूरमण तक
असंख्येय द्वीप-समुद्र प्रज्ञप्त हैं। ७८. भंते! जम्बूद्वीप द्वीप में द्रव्य–वर्ण-सहित भी हैं? वर्ण-रहित भी हैं? गंध-सहित भी हैं? गंध-रहित भी हैं? रस-सहित भी हैं? रस-रहित भी हैं ? स्पर्श-सहित भी हैं? स्पर्श-रहित भी हैं? अन्योन्य-बद्ध, अन्योन्य-स्पृष्ट, अन्योन्य-बद्धस्पृष्ट और अन्योन्य-एकीभूत बने हुए
हां, है। ७९. भंते! लवण समुद्र में द्रव्य-वर्ण-सहित भी हैं? वर्ण-रहित भी हैं? गंध-सहित भी हैं?
गंध-रहित भी हैं? रस-सहित भी हैं? रस-रहित भी हैं? स्पर्श-सहित भी हैं? स्पर्श-रहित भी हैं? अन्योन्य-बद्ध, अन्योन्य-स्पृष्ट, अन्योन्य-बद्धस्पृष्ट और अन्योन्य-एकीभूत बने हुए हैं? हां, हैं।
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