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भगवती सूत्र
श. ११ : उ. १,२ : सू. ३५-४३
गौतम! द्रव्य की अपेक्षा अनन्त-प्रदेशी द्रव्य, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्येय-प्रदेशावगाढ़, काल की अपेक्षा किसी भी स्थिति वाले और भाव की अपेक्षा वर्ण-, गन्ध-, रस- तथा स्पर्श-युक्त। इस प्रकार जैसे आहार-उद्देशक (पण्णवणा २८/३६) में वनस्पतिकायिक-जीवों के आहार की वक्तव्यता, वैसे ही यावत् सर्व-आत्म-प्रदेशों से आहार करता है। इतना विशेष है-नियमतः छहों दिशाओं से आहार करता है। शेष पण्णवणा की भांति वक्तव्यता
३६. भंते! उन जीवों की स्थिति कितने काल की प्रज्ञप्त है? ___ गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः दस हजार वर्ष । ३७. भंते! उन जीवों के कितने समुद्घात प्रज्ञप्त हैं ? । गौतम! तीन समुद्घात प्रज्ञप्त हैं, जैसे-वेदना-समुद्घात, कषाय-समुद्घात, मारणान्तिक-समुद्घात। ३८. भंते! वे जीव मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होकर मरते हैं? असमवहत रहकर मरते
गौतम! समवहत होकर भी मरते हैं, असमवहत रहकर भी मरते हैं। ३९. भंते! वे अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाते हैं? कहां उत्पन्न होते हैं क्या नैरयिक में उपपन्न होते हैं? तिर्यग्योनिक में उपपन्न होते हैं? इस प्रकार जैसे अवक्रान्ति-पद (पण्णवणा ६/ १०४) में वनस्पतिकायिक-जीवों की उद्वर्तना वैसे ही उत्पल-जीवों की वक्तव्यता। ४०. भंते! सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव, सर्व सत्त्व, उत्पल-मूल के रूप में, उत्पल-कंद के रूप में, उत्पल-नाल के रूप में, उत्पल-पत्र के रूप में, उत्पल-केसर के रूप में, उत्पल-कर्णिका के रूप में और उत्पल-स्तबक (शाखा का वह भाग, जहां से पत्र निकलते हैं) के रूप में पहले उपपन्न हुए हैं? हां गौतम! अनेक बार अथवा अनंत बार। ४१. भंते! वह ऐसा ही ह। भंते! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देशक
शालु आदि जीवों का उपपात-आदि-पद ४२. भंते! एकपत्रक-शालु क्या एक जीव वाला है? अनेक जीव वाला है? गौतम! एक जीव वाला है। इस प्रकार उत्पल-उद्देशक की वक्तव्यता सम्पूर्ण रूप से वक्तव्य है यावत् अनन्त बार, इतना विशेष है-शरीर की अवगाहना जघन्यतः अंगुल-का
असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-धनुष, शेष पूर्ववत्। ४३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
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