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श. ९ : उ. ३४ : सू. २४६-२५३
भगवती सूत्र गौतम! पुरुष का भी हनन करता है, नो-पुरुष का भी हनन करता है। २४७. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है पुरुष का भी हनन करता है? नो-पुरुष का
भी हनन करता है? गौतम! वह इस प्रकार सोचता है मैं एक पुरुष का हनन करता हूं किन्तु वह एक पुरुष का हनन करता हुआ अनेक जीवों का हनन करता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-वह पुरुष का भी हनन करता है, नो-पुरुष का भी हनन करता है। ऋषि के वध में अनंत-वध-पद २४८. भते! पुरुष अश्व का हनन करता हुआ क्या अश्व का हनन करता है, नो-अश्व का
हनन करता है? गौतम! वह अश्व का भी हनन करता है, नो-अश्व का भी हनन करता है। भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है? इसका अर्थ उक्त अर्थ की भांति वक्तव्य है। इसी प्रकार हाथी, सिंह, व्याघ्र यावत् चित्रल की वक्तव्यता। २४९. भंते! पुरुष ऋषि का हनन करता हुआ क्या ऋषि का हनन करता है? नो-ऋषि का
हनन करता है? गौतम! वह ऋषि का भी हनन करता है, नो-ऋषि का भी हनन करता है। २५०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-ऋषि का भी हनन करता है, नो-ऋषि का
भी हनन करता है? गौतम! वह इस प्रकार सोचता है-मैं एक ऋषि का हनन करता हूं किन्तु वह एक ऋषि का हनन करता हुआ अनंत जीवों का हनन करता है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-ऋषि का भी हनन करता है, नो-ऋषि का भी हनन करता है। वैर-बंध-पद २५१. भंते! पुरुष पुरुष का हनन करता हुआ क्या पुरुष के वैर से स्पृष्ट होता है? नो-पुरुष के
वैर से स्पष्ट होता है? गौतम! नियमतः उस पुरुष के वैर से स्पृष्ट होता है, अथवा पुरुष के वैर से और नो-पुरुष के वैर से स्पृष्ट होता है, अथवा पुरुष के वैर से और नो-पुरुषों के वैर से स्पृष्ट होता है इसी प्रकार अश्व यावत् चित्रल यावत् अथवा चित्रल के वैर से और नो-चित्रलों के वैर से स्पृष्ट होता है। २५२. भंते ! पुरुष ऋषि का हनन करता हुआ क्या ऋषि के वैर से स्पृष्ट होता है, नो-ऋषि के
वैर से स्पृष्ट होता है? गौतम! नियमतः ऋषि के वैर से और नो-ऋषियों के वैर से स्पृष्ट होता है। पृथ्वीकायिक आदि का आन-पान-पद २५३. भंते! क्या पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिक का ही आन और अपान तथा उच्छश्वास और निःश्वास लते हैं?
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