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श. ९ : उ. ३३ : सू. १९१-१९७
भगवती सूत्र कहा-देवानुप्रिय! शीघ्र ही अनेक सैकड़ों खंभों से युक्त, नृत्य करती हुई पुतलियों से उत्कीर्ण, जैसे (रायपसेणीय, सूत्र १७) के विमान-वर्णक में वक्तव्य है यावत् मणिरत्न-जटित घंटिका-जाल से घिरी हुई हजार पुरुषों द्वारा वहन की जाने वाली शिविका उपस्थित करो। उपस्थित कर मेरी इस आज्ञा को मुझे प्रत्यर्पित करो। तब कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा कर यावत् आज्ञा का प्रत्यर्पण किया। १९२. क्षत्रियकुमार जमालि को केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार, आभरणालंकार-इस
चतुर्विध अलंकार से अलंकृत किया गया। वह प्रतिपूर्ण अलंकृत होकर सिंहासन से उठा। उठकर शिविका की अनुप्रदक्षिणा कर शिविका पर आरूढ़ हो गया। आरूढ़ होकर प्रवर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख आसीन हुआ। १९३. क्षत्रियकुमार जमालि की माता ने स्नान किया, बलिकर्म किया, अल्पभार और बहुमूल्य
वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया। वह हंसलक्षण वाला पटशाटक ग्रहण कर शिविका की अनुप्रदक्षिणा करती हुई शिविका पर आरूढ़ हो गई। आरूढ़ होकर वह क्षत्रियकुमार जमालि के दक्षिण पार्श्व में प्रवर भद्रासन पर आसीन हुई। १९४. क्षत्रियकुमार जमालि की धायमाता ने स्नान किया, बलिकर्म किया यावत् अल्पभार
और बहुमूल्य वाले आभरणों से शरीर को अलंकृत किया। वह रजोहरण और पात्र को लेकर शिविका की अनुप्रदक्षिणा करती हुई शिविका पर आरूढ़ होकर क्षत्रियकुमार जमालि के वाम पार्श्व में प्रवर भद्रासन पर आसीन हुई। १९५. क्षत्रियकुमार जमालि के पीछे एक प्रवर तरुणी मूर्तिमान शृंगार और सुन्दर वेशवाली,
चलने, हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण तथा विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयन, लावण्य, रूप, यौवन और विलास से कलित, शारद मेघ, हिम, रजत, कुमुद, कुन्द और चन्द्रमा के समान कटसरैया की माला और दाम तथा धवल छत्र को लेकर लीला-सहित धारण करती हुई, धारण करती हुई खड़ी हो गई। १९६. क्षत्रियकुमार जमालि के दोनों ओर दो प्रवर तरुणियां मूर्तिमान शृंगार और सुन्दर
वेशवाली, चलने, हंसने, बोलने, और चेष्टा करने में निपुण, विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयनलावण्य, रूप, यौवन और विलास से कलित, नाना मणिरत्न (कनक) विमल और महामूल्य तपनीय (रक्तस्वर्ण) से निर्मित, उज्ज्वल और विचित्र दण्ड वाले दीप्तिमान शंख, अंकरत्न, कुन्द, जलकण, अमृत और मथित फेनपुञ्ज जैसे चामरों को लेकर लीला के साथ वीजन करती हुई, वीजन करती हुई खड़ी हो गई। १९७. क्षत्रियकुमार जमालि के उत्तर-पश्चिम में एक प्रवर तरुणी मूर्तिमान शृंगार और सुन्दर वेश वाली, चलने, हंसने, बोलने और चेष्टा करने में निपुण, विलास और लालित्यपूर्ण संलाप में निपुण, समुचित उपचार में कुशल, सुन्दर स्तन, कटि, मुख, हाथ, पैर, नयन, लावण्य, रूप, यौवन और विलास से कलित, श्वेत, रजतमय विमल सलिल से परिपूर्ण, मत्त हाथी के विशाल मुख की आकृति के समान झारी लेकर खड़ी हो गई।
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