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भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३१ : सू. २८-३१ २८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवल मनःपर्यव-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है और कोई नहीं कर सकता? गौतम! जिसके मनःपर्यव-ज्ञानावरणीय-कर्म का क्षयोपशम होता है वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल मनःपर्यव-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है। जिसके मनःपर्यव-ज्ञानावरणीय-कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल मनःपर्यव-ज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवल मनःपर्यव-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है और
कोई नहीं कर सकता। २९. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवलज्ञान उत्पन्न
कर सकता है? गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवलज्ञान उत्पन्न कर
सकता है और कोई नहीं कर सकता। ३०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवलज्ञान उत्पन्न कर सकता है और कोई नहीं कर सकता? गौतम! जिसके केवलज्ञानावरणीय-कर्म का क्षय होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवलज्ञान उत्पन्न कर सकता है। जिसके केवलज्ञानावरणीय-कर्म का क्षय नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवलज्ञान उत्पन्न कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। ३१. भंते! क्या कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना १. केवलि-प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है? २. केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है? ३. मुंड होकर अगार से केवल अनगार-धर्म में प्रव्रजित हो सकता है? ४. केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है? ५. केवल संयम से संयमित हो सकता है? ६. केवल संवर से संवृत हो सकता है? ७. केवल आभिनिबोधिक-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है? ८. केवल श्रुत-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है? ९. केवल अवधि-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है? १०. केवल मनःपर्यव-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है? ११. केवल-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है? गौतम! केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना १. कोई पुरुष केवलि-प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। २. कोई पुरुष केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। ३. कोई पुरुष मुण्ड होकर अगार से केवल अनगार-धर्म में प्रव्रजित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। ४. कोई पुरुष केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है और कोई नहीं रह सकता। ५. कोई पुरुष केवल संयम से संयमित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। ६. कोई पुरुष केवल संवर से संवृत हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। ७. कोई पुरुष केवल आभिनिबोधिक-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। ८. कोई पुरुष केवल श्रुत-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है
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