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भगवती सूत्र
श. ९ : उ. ३१ : सू. १६-२२ की उपासिका से सुने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है। जिसके चरित्रावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में नहीं रह सकता। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - कोई पुरुष ने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है और कोई नहीं रह सकता ।
१७. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संयम से संयमित हो सकता है ?
गौतम ! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संयम से संयमित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता ।
१८. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - कोई पुरुष सुने बिना केवल संयम से संयमित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता ?
गौतम ! जिसके यतनावरणीयकर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संयम से संयमित हो सकता है। जिसके यतनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संयम से संयमित नहीं हो सकता। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-कोई पुरुष सुने बिना केवल संयम से संयमित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता । १९. भंते! क्या कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संवर से संवृत हो सकता है ?
गौतम ! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संवर से संवृत हो सकता है और कोई नहीं हो सकता ।
२०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - कोई पुरुष सुने बिना केवल संवर से संवृत हो सकता है और कोई नहीं हो सकता ?
गौतम ! जिसके अध्यवसानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संवर से संवृत हो सकता है। जिसके अध्यवसानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल संवर से संवृत नहीं हो सकता । गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है—कोई पुरुष सुने बिना केवल संवर से संवृत हो सकता है और कोई नहीं हो
सकता ।
२१. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न कर सकता है ?
गौतम ! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न कर सकता है और कोई नहीं कर सकता ।
२२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - कोई पुरुष सुने बिना केवल आभिनिबोधिक-ज्ञान उत्पन्न कर सकता है ओर कोई नहीं कर सकता ?
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