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श. ८ : उ. १० : सू. ४८८-४९५
भगवती सूत्र
ज्ञानावरणीय-कर्म की वक्तव्यता। जैसे ज्ञानावरणीय के साथ दर्शनावरणीय की वक्तव्यता है,
वैसे ज्ञानावरणीय और आंतरायिक परस्पर नियमतः वक्तव्य हैं। ४८९. भंते! जिसके दर्शनावरणीय है क्या उसके वेदनीय होता है? जिसके वेदनीय है क्या उसके दर्शनावरणीय होता है? जैसे ज्ञानावरणीय की उत्तरवर्ती सात कर्मों के साथ वक्तव्यता है वैसे दर्शनावरणीय उत्तरवर्ती छह कर्मों के साथ वक्तव्य है यावत् दर्शनावरणीय और आंतरायिक परस्पर नियमतः वक्तव्य
४९०. भंते! जिसके वेदनीय है क्या उसके मोहनीय होता है? जिसके मोहनीय है क्या उसके वेदनीय होता है? गौतम! जिसके वेदनीय है उसके मोहनीय स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके मोहनीय है उसके वेदनीय नियमतः होता है। ४९१. भंते ! जिसके वेदनीय है क्या उसके आयुष्य होता है? जिसके आयुष्य है क्या उसके वेदनीय होता है? ये परस्पर नियमतः होते हैं, जैसे आयुष्य के साथ वेदनीय की वक्तव्यता उसी प्रकार नाम
और गोत्र के साथ भी वेदनीय वक्तव्य है। ४९२. भंते! जिसके वेदनीय है क्या उसके आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक है उसके
वेदनीय होता है? गौतम! जिसके वेदनीय है उसके आंतरायिक स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके
आंतरायिक है उसके वेदनीय नियमतः होता है। ४९३. भंते! जिसके मोहनीय है, क्या उसके आयुष्य होता है? जिसके आयुष्य है क्या उसके मोहनीय होता है? गौतम! जिसके मोहनीय है, उसके आयुष्य नियमतः होता है। जिसके आयुष्य है उसके मोहनीय स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। इसी प्रकार नाम, गोत्र और आंतरायिक की वक्तव्यता। ४९४. भंते! जिसके आयुष्य है क्या उसके नाम होता है? जिसके नाम है क्या उसके आयुष्य होता है? गौतम! ये दोनों परस्पर नियमतः होते हैं इसी प्रकार गोत्र-कर्म के साथ नाम कर्म की
वक्तव्यता। ४९५. भंते! जिसके आयुष्य है क्या उसके आंतरायिक होता है? जिसके आंतरायिक है क्या उसके आयुष्य होता है? गौतम! जिसके आयुष्य है उसके आंतरायिक स्यात् होता है, स्यात् नहीं होता। जिसके आंतरायिक है उसके आयुष्य नियमतः होता है।
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