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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. १० : सू. ४४९-४५५
दसवां उद्देशक श्रुत-शील-पद ४४९. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान
करते हैं यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं१. शील श्रेय है २. श्रुत श्रेय है ३. श्रुत और शील श्रेय है। ४५०. भंते! यह कैसे है? गौतम! जो अन्ययूथिक इस प्रकार आख्यान करते हैं यावत् इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम! मैं इस प्रकार आख्यान करता हं यावत प्ररूपणा करता हैमैंने चार प्रकार के पुरुषों का प्रज्ञापन किया जैसे-१. कोई पुरुष शील-संपन्न होता है, श्रुत-संपन्न नहीं होता २. कोई पुरुष श्रुत-संपन्न होता है, शील-संपन्न नहीं होता। ३. कोई पुरुष शील-संपन्न भी होता है, श्रुत-संपन्न भी होता है ४. कोई पुरुष न शील-संपन्न होता है
और न श्रुत-संपन्न होता है। जो प्रथम प्रकार का पुरुष है वह शीलवान है, श्रुतवान नहीं है-उपरत (अकरणीय से निवृत्त) है, धर्म का विज्ञाता नहीं है। गौतम! उस पुरुष को मैंने देशाराधक कहा है। जो दूसरे प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान नहीं है, श्रुतवान है-उपरत नहीं है, धर्म का विज्ञाता है। गौतम! उस पुरुष को मैंने देशविराधक कहा है। जो तीसरे प्रकार का पुरुष है, वह शीलवान है श्रुतवान भी है–उपरत है, धर्म का विज्ञाता भी है। गौतम! उस पुरुष को मैंने सर्वाराधक कहा है। जो चतुर्थ प्रकार का पुरुष है वह शीलवान नहीं है, श्रुतवान भी नहीं है-उपरत नहीं है, धर्म का विज्ञाता भी नहीं हैं। गौतम! उस पुरुष को मैंने सर्व-विराधक कहा है। आराधना-पद ४५१. भंते! आराधना के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! आराधना के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-ज्ञानाराधना, दर्शनाराधना, चरित्राराधना। ४५२. भंते! ज्ञानाराधना के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य । ४५३. भंते! दर्शनाराधना के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य। ४५४. भंते! चरित्राराधना के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य। ४५५. भंते! जिसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है क्या उसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना है? जिसके उत्कृष्ट दर्शनाराधना है क्या उसके उत्कृष्ट ज्ञानाराधना है?
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