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भगवती सूत्र
श. ८ : उ. ८,९ : सू. ३४२-३५१
जीवाजीवाभिगम (तीसरी प्रतिपत्ति) की भांति वक्तव्यता यावत्३४३. भंते! इन्द्रस्थान उपपात से कितने काल तक विरहित प्रज्ञप्त है?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः छह मास । ३४४. भंते ! वह ऐसा ही है। भंते ! वह ऐसा ही है।
नौवां उद्देशक
बंध-पद ३४५. भंते! बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है?
गौतम! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-प्रयोग-बंध, विस्रसा-बंध । विस्रसा-बंध-पद ३४६. भंते ! विस्रसा-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है?
गौतम! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है जैसे-सादिक विस्रसा-बंध, अनादिक विस्रसा-बंध । ३४७. भंते! अनादिक विस्रसा-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विस्रसा-बंध, अधर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विस्रसा-बंध, आकाशास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विससा-बंध। ३४८. भंते! धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विस्रसा-बंध क्या देश-बंध है? सर्व-बंध है? गौतम! देश-बंध है, सर्व-बंध नहीं है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विससा-बंध की वक्तव्यता। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विससाबंध की वक्तव्यता। ३४९. भंते! धर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विस्रसा-बंध काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है? गौतम! सर्व काल तक। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विस्रसा-बंध की वक्तव्यता। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय-अन्योन्य-अनादिक-विस्रसा-बंध की वक्तव्यता। ३५०. भंते! सादिक-विस्रसा-बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-बंधन-प्रत्ययिक, भाजन-प्रत्ययिक, परिणाम-प्रत्ययिक। ३५१. वह बंधन-प्रत्ययिक क्या है ? बंधन-प्रत्ययिक–परमाणु-पुद्गल, द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक यावत् दशप्रदेशिक, संख्येयप्रदेशिक, असंख्येयप्रदेशिक, अनंतप्रदेशिक स्कंधों की विमात्र (विषम मात्रा वाली) स्निग्धता, विमात्र रूक्षता, विमात्र स्निग्ध-रूक्षता से होने वाले बंधन-प्रत्यय के कारण जो बंध-उत्पन्न होता है, वह बंधन-प्रत्ययिक है। इसका कालमान जघन्यतः एक समय,
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