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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. ८ : सू. ३११-३१९ ३११. भंते! यदि वेद-रहित बंध करता है, वेद-रहित बंध करते हैं तो क्या भंते । स्त्री पश्चात्कृत बंध करती है ? पुरुष पश्चात्कृत बंध करता है ? इस प्रकार जैसे ऐर्यापथिक बंध की वक्तव्यता है वैसे ही निरवशेष रूप में वक्तव्य है यावत् अथवा स्त्री पश्चात्कृत, पुरुष पश्चात्कृत, नपुंसक पश्चात्कृत बंध करते हैं। ३१२. भंते! १. क्या जीव ने उस सांपरायिक कर्म का बंध किया, करता है और करेगा ? २. बंध किया, करता है और नहीं करेगा ? ३. बंध किया, नहीं करता और करेगा ? ४. बंध किया, नहीं करता है और नहीं करेगा ? गौतम ! १. किसी जीव ने बंध किया, करता है और करेगा । २. किसी जीव ने बंध किया, करता है और नहीं करेगा ३. किसी जीव ने बंध किया, नहीं करता है और करेगा ४. किसी जीव ने बंध किया, नहीं करता है और नहीं करेगा । पूर्ववत् पृच्छा । ३१३. भंते! क्या सांपरायिक कर्म का बंध सादि सपर्यवसित होता है ? गौतम ! वह सादि - सपर्यवसित होता है, अनादि सपर्यवसित होता है, होता है, सादि - अपर्यवसित नहीं होता । ३१४. भंते! क्या देश के द्वारा देश का बंध होता है ? ऐर्यापथिक बंध की भांति वक्तव्यता यावत् सर्व के द्वारा सर्व का बंध होता है। कर्म-प्रकृतियों में परीषह - समवतार - पद ३१५. भंते! कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ? अनादि - अपर्यवसित गौतम ! कर्म-प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं, जैसे - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अंतराय । ३१६. भंते! परीषह कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! परीषह बाईस प्रज्ञप्त हैं, जैसे - क्षुधा - परीषह, पिपासा - परीषह, शीत- परीषह, उष्ण-परीषह, दंश-मशक - परीषह, अचेल - परीषह, अरति - परीषह, स्त्री - परीषह, चर्या - परीषह, निषद्या - परीषह, शय्या - परीषह, आक्रोश- परीषह, वध - परीषह, याचना - परीषह, अलाभ- परीषह, रोग - परीषह, तृणस्पर्श- परीषह, जल्ल - ( स्वेद - जनित मैल) - परीषह, - पुरस्कार - परीषह, प्रज्ञा - परीषह, ज्ञान- परीषह, दर्शन - परीषह । सत्कार - ३१७. भंते! इन बाईस परीषहों का कितनी कर्म - प्रकृतियों में समवतार होता है ? गौतम ! चार कर्म - प्रकृतियों में समवतार होता है, जैसे- ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, अंतराय । ३१८. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम! ज्ञानावरणीय-कर्म में दो परीषहों का समवतार होता है जैसे- प्रज्ञा - परीषह, ज्ञान-परीषह । ३१९. भंते! वेदनीय कर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? ३०८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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