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श. ८ : उ. २ : सू. १८८-१९२
भगवती सूत्र द्रव्य की दृष्टि से केवल-ज्ञानी सब द्रव्यों को जानता-देखता है। क्षेत्र की दृष्टि से केवल-ज्ञानी सर्वक्षेत्र को जानता-देखता है। काल की दृष्टि से केवल-ज्ञानी सर्वकाल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से केवल-ज्ञानी सब भावों को जानता-देखता है। १८९. भंते! मति-अज्ञान का विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! मति-अज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। द्रव्य की दृष्टि से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान के विषयभूत द्रव्यों को जानता-देखता है। क्षेत्र की दृष्टि से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान के विषयभूत क्षेत्र को जानता-देखता है। काल की दृष्टि से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान के विषयभूत काल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान के विषय भूत भावों को जानता-देखता है। १९०. भंते! श्रुत-अज्ञान का विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! श्रुत-अज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। द्रव्य की दृष्टि श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत द्रव्यों का आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है। क्षेत्र की दृष्टि से श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत क्षेत्र का आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है। काल की दृष्टि से श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत काल का आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है भाव की दृष्टि से श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषयभूत भावों का आख्यान, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है। १९१. भंते! विभंग-ज्ञान का विषय कितना प्रज्ञप्त है? गौतम! विभंग-ज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-द्रव्य की दृष्टि से, क्षेत्र की दृष्टि से, काल की दृष्टि से, भाव की दृष्टि से। द्रव्य की दृष्टि से विभंग-ज्ञानी विभंग-ज्ञान के विषयभूत द्रव्यों को जानता-देखता है। क्षेत्र की दृष्टि से विभंग-ज्ञानी विभंग-ज्ञान के विषयभूत क्षेत्र को जानता-देखता है। काल की दृष्टि से विभंग-ज्ञानी विभंग-ज्ञान के विषयभूत काल को जानता-देखता है। भाव की दृष्टि से विभंग-ज्ञानी विभंग-ज्ञान के विषयभूत भावों को जानता-देखता है। ज्ञानी का संस्थिति-पद १९२. भंते! ज्ञानी ज्ञानी के रूप में कितने काल तक रहता है?
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