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श. ८ : उ. २ : सू. १२८-१३८
भगवती सूत्र १२८. द्वीन्द्रिय की पृच्छा। दो ज्ञान और दो अज्ञान नियमतः होते हैं। इस प्रकार यावत् पंचेन्द्रिय- तिर्यक्योनिक की वक्तव्यता। १२९. भन्ते! अपर्याप्तक-मनुष्य क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं? तीन ज्ञान की भजना है, दो अज्ञान नियमतः होते हैं। अपर्याप्त-वानमन्तर की वक्तव्यता नैरयिक की भांति ज्ञातव्य है। अपर्याप्त-ज्योतिष्क-देवों और अपर्याप्त-वैमानिक-देवों के नियमतः तीन ज्ञान और तीन अज्ञान होते हैं। १३०. भन्ते! नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक-जीव क्या ज्ञानी हैं?
सिद्धों की भांति वक्तव्यता। भवस्थ की अपेक्षा १३१. भन्ते! नैरयिक के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं?
नरक की अंतराल-गति में विद्यमान जीव की भांति वक्तव्यता। १३२. भन्ते! तिर्यंच के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं?
तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना है। १३३. मनुष्य के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं?
सकायिक-जीवों की भांति वक्तव्यता। १३४. भन्ते! देव के भव में स्थित जीव क्या ज्ञानी हैं? अज्ञानी हैं?
नैरयिक के भव में स्थित जीव की भांति वक्तव्यता।
अभवस्थ की वक्तव्यता सिद्ध की भांति ज्ञातव्य है। भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक की अपेक्षा १३५. भंते! भवसिद्धिक-जीव क्या ज्ञानी हैं?
सकायिक-जीवों की भांति वक्तव्यता। १३६. अभवसिद्धिकों की पृच्छा।
गौतम! ज्ञानी नहीं हैं, अज्ञानी हैं, तीन अज्ञान की भजना है। १३७. भंते! नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक-जीव क्या ज्ञानी हैं?
सिद्धों की भांति वक्तव्यता। संज्ञी-असंज्ञी की अपेक्षा १३८. संज्ञी-जीवों की पृच्छा। सइन्द्रिय-जीवों की भांति वक्तव्यता। असंज्ञी-जीवों की द्वीन्द्रिय-जीवों की भांति वक्तव्यता। नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी-जीवों की सिद्धों की भांति वक्तव्यता।
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