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श. ८ : उ. १ : सू. ३८-४२
भगवती सूत्र काल-वर्ण-परिणत भी हैं यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। इसी प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता। इसी प्रकार यथाक्रम जिसके जितनी इन्द्रियां हैं उसके उतनी वक्तव्य हैं यावत् जो पर्याप्तसर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। शरीर, इन्द्रिय और वर्ण-आदि की अपेक्षा प्रयोग-परिणति-पद ३९. जो अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-, तैजस-,कर्म-शरीर-स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। इसी प्रकार पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-, तैजस-, कर्म-शरीर-स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत की वक्तव्यता, इसी प्रकार यथाक्रम जिसके जितने शरीर और इन्द्रियां हैं वे वक्तव्य हैं यावत् जो पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक-देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय-, तैजस-, कर्म-शरीर-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं वे वर्ण से काल-वर्ण-परिणत भी हैं यावत् आयत-संस्थान-परिणत भी हैं। प्रयोग
-परिणत के ये नौ दण्डक हैं। मिश्र-परिणति-पद ४०. भन्ते! मिश्र-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! मिश्र-परिणत पुद्गल पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-एकेन्द्रिय-मिश्र-परिणत यावत् पंचेन्द्रिय-मिश्र-परिणत। ४१. भन्ते! एकेन्द्रिय-मिश्र-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
जैसे-प्रयोग-परिणत के नौ दण्डक कहे गए हैं उसी प्रकार मिश्र-परिणत के भी नौ दण्डक वक्तव्य हैं। शेष सब पूर्ववत्, केवल इतना विशेष है-प्रयोग-परिणत के स्थान पर मिश्र-परिणत कहना चाहिए यावत् जो पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक यावत् आयत
-संस्थान-परिणत भी हैं। विस्रसा-परिणति-पद ४२. भन्ते! विस्रसा-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! विस्रसा-परिणत पुद्गल पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-वर्ण-परिणत, गंध-परिणत, रस-परिणत, स्पर्श-परिणत, संस्थान-परिणत। जो वर्ण-परिणत हैं वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-काल-वर्ण-परिणत यावत् शुक्ल-वर्ण-परिणत। जो गंध-परिणत हैं वे दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे सुगंध-परिणत और दुर्गन्ध-परिणत। जो रस-परिणत हैं वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-तिक्त-रस-परिणत यावत् मधुर-रस-परिणत। जो स्पर्श-परिणत हैं वे आठ प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-कठोर-स्पर्श-परिणत यावत् रूक्ष-स्पर्श-परिणत। जो संस्थान-परिणत हैं वे पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे परिमण्डल-संस्थान-परिणत यावत्
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