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भगवती सूत्र
श. ७ : उ. ६ : सू. ११४-११८ ११४. भन्ते! जीवों के सात-वेदनीय-कर्म का बंध किस कारण से होता है। गौतम! प्राणों की अनुकम्पा, भूतों की अनुकम्पा, जीवों की अनुकम्पा, सत्त्वों की अनुकम्पा, अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी न बनाना, शोकाकुल न करना, न जुराना (शरीर को जीर्ण अथवा खेद खिन्न न करना) न रुलाना, न पीटना, न परिताप देना-गौतम! इस प्रकार की अनुकम्पा-वृत्ति से जीवों के सात-वेदनीय-कर्म का बंध होता है। इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों के सात-वेदनीय-कर्म का बंध होता है। ११५. भन्ते! क्या जीवों के असात-वेदनीय-कर्म होते हैं?
हां, होते हैं। ११६. भन्ते! जीवों के असात-वेदनीय-कर्म का बंध किस कारण से होता है?
गौतम! दूसरों को दुःखी बनाना, शोकाकुल बनाना, जुराना (शरीर को जीर्ण और खेद खिन्न करना) रुलाना, पीटना, परिताप देना, अनेक प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को दुःखी बनाना, शोकाकुल करना, जुराना, रूलाना, पीटना, परिताप देना-गौतम! इस प्रकार की क्रूर वृत्ति से जीवों के असात-वेदनीय-कर्म का बंध होता है। इसी प्रकार नैरयिक यावत् वैमानिकों के
असात-वेदनीय-कर्म का बंध होता है। दुःषम-दुःषमा-पद ११७. भन्ते! जम्बूद्वीप द्वीप में इस अवसर्पिणी का दुःषम-दुषमा अर पराकाष्ठा पर होगा, तब भरतक्षेत्र के आकार-पर्याय का अवतरण कैसा होगा? गौतम! वह काल हाहाकारमय होगा, पशुओं का 'भां-भां' इस प्रकार का आर्तस्वर तथा पीड़ित पक्षियों का कोलाहल होगा। उस काल के प्रभाव से खर-पुरुष धूलि से मटमैले, दुःसह वातुल (बवण्डर) तथा भयंकर प्रलयंकारी हवाएं चलेंगीं। दिशाएं बार-बार धूमिल रजकणों से व्याप्त तथा धूल-भरी आंधियों से अन्धकारमय हो जाएंगीं। 'समय' की रूक्षता के कारण चांद अधिक शीतल होंगे। सूर्यों का ताप अधिक तपेगा। अरस जल वाले मेघ, विरस जल वाले मेघ, क्षार जल वाले मेघ, खाद के समान रस वाले मेघ, अग्नि की भांति दाहक जल वाले मेघ, विद्युत् निपात करने वाले मेघ, विषयुक्त जल वाले मेघ, ओला-वृष्टि वाले मेघ-इस प्रकार के अनेक मेघ बार-बार बरसेंगे। उनका जल पीने योग्य नहीं होगा। वह व्याधि, रोग, वेदना को उभारने वाला होगा। वह अमनोज्ञ होगा और वर्षा भी प्रचण्ड वायु के आघात से प्रेरित हो मूसलाधार होगी। उस वर्षा के कारण भरत क्षेत्र में गांव, आकर, नगर, खेट, कब्बड, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टण, आश्रम आदि जनपदों, गाय, भेड़ आदि पशुओं, आकाशविहारी पक्षी-समूहों, गांव और जंगल में घूमने वाले प्राणियों और बहुत प्रकार के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्लि, तृण, पर्व, हरित, औषधि, प्रवाल, अंकुर आदि तृण वनस्पतिकाय का विध्वंस हो जायेगा। वैताढ्य पर्वत को छोड़ कर शेष सारे पर्वत, गिरि, डूंगर, टीले, पठार नष्ट हो जायेंगे। गंगा और सिंधु नदी को छोड़ कर शेष सारे भूमि-निर्झर, गढे, दुर्ग, विषम प्रदेश और निम्नोन्नत प्रदेश समतल हो जायेंगे। ११८. भन्ते! उस काल में भरत क्षेत्र की भूमि के आकार और भाव का अवतरण कैसा होगा?
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