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श. ७ : उ. ३ : सू. ६८-७७
भगवती सूत्र वाला और नील-लेश्या वाला नैरयिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है? गौतम! स्थिति की अपेक्षा से। गौतम! इसलिए यह कहा जा रहा है यावत् नील-लेश्या वाला नैरयिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है। ६९. भन्ते! स्यात् नील-लेश्या वाला नैरयिक अल्पतर-कर्म वाला और कापोत-लेश्या वाला नैरयिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है? हां, स्यात् हो सकता है। ७०. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नील-लेश्या वाला नैरयिक अल्पतर-कर्म वाला और कापोत-लेश्या वाला नैरयिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है? गौतम! स्थिति की अपेक्षा से। गौतम! इसलिए यह कहा जा रहा है यावत् कापोत-लेश्या वाला नैरयिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है। ७१. असुरकुमार की वक्तव्यता भी इसी प्रकार है। विशेष यह है कि असुरकुमार में तेजो-लेश्या वक्तव्य है। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। जिसमें जितनी लेश्याएं हैं, उतनी वक्तव्य हैं। ज्योतिष्क-देवों में केवल तेजो-लेश्या होती है, इसलिए वह इस प्रकरण में वक्तव्य नहीं है। यावत्७२. भन्ते! स्यात् पद्म-लेश्या वाला वैमानिक अल्पतर-कर्म वाला और शुक्ल-लेश्या वाला वैमानिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है? हां, स्यात् हो सकता है। ७३. भन्ते! यह किस अपेक्षा से?
गौतम! स्थिति की अपेक्षा से। गौतम! इसलिए यह कहा जा रहा है। यावत् शुक्ल-लेश्या वाला वैमानिक महत्तर-कर्म वाला हो सकता है। वेदना-निर्जरा-पद ७४. भन्ते! क्या जो वेदना है वह निर्जरा है, जो निर्जरा है वह वेदना है?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ७५. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जो वेदना है वह निर्जरा नहीं है? जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है? गौतम! वेदना कर्म की होती है, निर्जरा नो-कर्म की होती है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है जो वेदना है वह निर्जरा नहीं है, जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है। ७६. भन्ते! क्या नैरयिकों के जो वेदना है वह निर्जरा है? जो निर्जरा है वह वेदना है?
गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ७७. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिकों के जो वेदना है वह निर्जरा नहीं है? जो निर्जरा है वह वेदना नहीं है? गौतम! नैरयिकों के वेदना कर्म की होती है, निर्जरा नोकर्म की होती है। गौतम! इस अपेक्षा
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