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भगवती सूत्र
श. ७ : उ. २,३ : सू. ५५-६२
५५. भन्ते ! जीव क्या प्रत्याख्यानी हैं ? अप्रत्याख्यानी हैं ? प्रत्याख्यानी अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम! जीव जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, अप्रत्याख्यानी भी हैं, प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी भी हैं ।
५६. इसी प्रकार मनुष्यों की वक्तव्यता | पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव प्रत्याख्यानी नहीं हैं । वैमानिक देवों तक शेष सभी जीव अप्रत्याख्यानी हैं।
५७. भन्ते ! इन प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! प्रत्याख्यानी जीव सबसे अल्प हैं, प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी जीव उनसे असंख्येयगुणा अधिक हैं, अप्रत्याख्यानी जीव उनसे अनन्तगुणा अधिक हैं । पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों में सबसे अल्प प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येयगुणा अधिक हैं।
मनुष्य में प्रत्याख्यानी सबसे अल्प हैं, प्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी उनसे संख्येयगुणा अधिक है, अप्रत्याख्यानी उनसे असंख्येयगुणा अधिक है।
शाश्वत अशाश्वत-पद
५८. भन्ते ! जीव क्या शाश्वत हैं ? अशाश्वत हैं ?
गौतम! जीव स्यात् शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं ।
५९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव स्यात् शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं ? गौतम ! द्रव्यार्थता (द्रव्य - राशि) की अपेक्षा जीव शाश्वत हैं, भावार्थता ( पर्याय) की अपेक्षा जीव अशाश्वत हैं।
गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - जीव स्यात् शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं । ६०. भन्ते ! नैरयिक क्या शाश्वत है ? अशाश्वत हैं ?
जिस प्रकार जीव की वक्तव्यता, उसी प्रकार नैरयिकों की वक्तव्यता । इस प्रकार वैमानिक-देवों तक सभी जीव स्यात् शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं।
६१. भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है।
तीसरा उद्देशक
वनस्पति- आहार पद
६२. भन्ते! वनस्पतिकायिक-जीव किस समय सबसे अल्प आहार करते हैं और किस समय सबसे अधिक आहार करते हैं ?
गौतम ! प्रावृट्- और वर्षा ऋतु में वनस्पतिकायिक- जीव सबसे अधिक आहार करते हैं, तदनन्तर शरद् ऋतु में उससे अल्प, हेमन्त ऋतु में उससे अल्प, बसन्त ऋतु में उससे अल्प और ग्रीष्म ऋतु में उससे अल्प आहार करते हैं। ग्रीष्म ऋतु में वनस्पतिकायिक- जीव सबसे अल्प आहार करते हैं ।
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