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श. ६ : उ. ७ : सू. १३१-१३४
भगवती सूत्र १३१. अलसी, कुसुम्भ, कोदव, कंगु, चीना धान्य, दाल, कोदव की एक जाति, सन, सरसों, मूलक बीज-इन धान्यों को कोठे, पल्य, मचान और माल में डाल कर उनके द्वार-देश को लीप देने, चारों ओर से लीप देने, ढक्कन से ढ़क देने, मिट्टी से मुद्रित कर देने और रेखाओं से लांछित कर देने पर उनकी योनि कितने काल तक रहती है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः सात वर्ष । उसके बाद योनि म्लान हो जाती है, प्रविध्वस्त हो जाती है, बीज अबीज हो जाता है, योनि का विच्छेद हो जाता है, आयुष्यमन्
श्रमण!
गणना-काल-पद १३२. भन्ते! प्रत्येक मुहूर्त का उच्छ्वास-काल कितना होता है?
गौतम! असंख्येय समयों के समुदय, समिति और समागम से एक आवलिका होती है। संख्येय आवलिकाओं का एक उच्छ्वास होता है। संख्येय आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है। गाथाएंहृष्ट, नीरोग और मानसिक क्लेश से मुक्त प्राणी का एक उच्छ्वास-निःश्वास प्राण कहलाता है, सात प्राण का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और सतहत्तर लवों का एक मुहूर्त होता है। तीन-हजार-सात-सौ-तिहत्तर (३७७३) उच्छ्वासों का एक मुहूर्त होता है यह सब अनन्तज्ञानियों द्वारा दृष्ट है। इस मुहूर्त-प्रमाण से तीस मुहूर्त का एक दिन-रात, पंद्रह दिन-रात का एक पक्ष, दो पक्ष का एक मास, दो मास की एक ऋतु, तीन ऋतु का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर, पांच संवत्सर का एक युग, बीस युग की एक शताब्दी, दस शताब्दियों की एक सहस्राब्दी, सौ सहस्राब्दियों का एक लाख वर्ष, चौरासी-लाख वर्ष का एक पूर्वांग, चौरासी-लाख पूर्वांगों का एक पूर्व होता है। इसी प्रकार (पूर्वोक्त क्रम से) त्रुटितांग, त्रुटित, अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनिकुरांग, अर्थनिकुर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका। यहां तक गणित है, यहां तक गणित का विषय है। इसके बाद औपमिक काल प्रवृत्त होता है। औपमिक-काल-पद १३३. वह औपमिक क्या है?
औपमिक के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे–पल्योपम और सागरोपम। १३४. वह पल्योपम क्या है? वह सागरोपम क्या है?
गाथा
सुतीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन नहीं किया जा सकता, उस (व्यावहारिक) परमाणु को सिद्ध पुरुष (केवली) प्रमाणों का आदि बतलाते हैं।
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