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भगवती सूत्र
श. ६ : उ. ५ : सू. ७५-८६ करे तो किसी (संख्यात-योजन विस्तार वाले) तमस्काय का अतिक्रमण कर जाता है और किसी (असंख्यात-योजन विस्तार वाले) तमस्काय का अतिक्रमण नहीं कर पाता। गौतम ! तमस्काय इतना बड़ा प्रज्ञप्त है। ७६. भन्ते! तमस्काय में क्या घर है? गृह-आपण (दुकानें) हैं?
यह अर्थ संगत नहीं है। ७७. भन्ते! तमस्काय में क्या गांव है? यावत् सन्निवेश हैं?
यह अर्थ संगत नहीं है। ७८. भन्ते! तमस्काय में क्या बड़े मेघ संस्विन्न होते हैं? संमूर्च्छित होते हैं? (मेघ का आकार लेते हैं) बरसते हैं? हां, ऐसा होता है। ७९. भन्ते! क्या वह संस्वेदन, सम्मूर्छन, वर्षणा कोई देव करता है? असुर करता है? नाग करता है? गौतम! देव भी करता है, असुर भी करता है, नाग भी करता है। ८०. भन्ते! तमस्काय में क्या बादर (स्थूल) गर्जन का शब्द है? बादर विद्युत् है?
हां, है। ८१. भन्ते! क्या वह (गर्जन का शब्द और विद्युत्) कोई देव करता है? असुर करता है? नाग
करता है? तीनों ही करते हैं। ८२. भन्ते! तमस्काय में क्या बादर-पृथ्वीकाय है? बादर-अग्निकाय है?
यह अर्थ संगत नहीं है, विग्रह-गति (अन्तराल-गति) करते हुए जीवों को छोड़ कर । ८३. भन्ते! तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप हैं? __ यह अर्थ संगत नहीं है। उसके परिपार्श्व में चन्द्रमा आदि पांचों हैं। ८४. भन्ते! तमस्काय में क्या चन्द्रमा की आभा है? सूर्य की आभा है?
यह अर्थ संगत नहीं है। पार्श्ववर्ती चंद्र, सूर्य की प्रभा तमस्काय में आ कर धुंधली बन जाती है। ८५. भन्ते! तमस्काय वर्ण से कैसा प्रज्ञप्त है?
गौतम! वह वर्ण से काला, कृष्ण अवभास वाला, गम्भीर, रोमाञ्च उत्पन्न करने वाला, भयंकर, उत्त्रासक और परम कृष्ण प्रज्ञप्त है। कोई एक देव भी उसे देखकर प्रथम दर्शन में क्षुब्ध हो जाता है; यदि वह उसमें प्रविष्ट हो जाता है तो उसके पश्चात् अतिशीघ्रता और
अतित्वरा के साथ झटपट उसके बाहर चला जाता है। ८६. भन्ते! तमस्काय के कितने नाम हैं? गौतम! तमस्काय के तेरह नाम प्रज्ञप्त हैं, जैसे-तम, तमस्काय, अन्धकार, महान्धकार,
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