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श. ५ : उ. ८ : सू. २२२-२३१
भगवती सूत्र अवस्थिति-काल है। यह पूरा प्रकरण इस प्रकार वक्तव्य है-जीवों की वृद्धि और हानि का क्रम जघन्यतः एक समय ओर उत्कर्षतः आवलिका का असंख्यातवा भाग है। अवस्थित काल (सभी का जघन्यतः एक समय उत्कर्षतः) जो ऊपर बताया गया, वैसा ही
है।
२२३. भन्ते! सिद्ध कितने काल तक बढ़ते हैं?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आठ समय । २२४. भन्ते! सिद्ध कितने काल तक अवस्थित हैं।
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः छह मास तक। जीवों का सोपचय-सापचय-आदि पद २२५. भन्ते! क्या जीव उपचय-सहित है? अपचय-सहित हैं? उपचय-अपचय-सहित हैं? अथवा उपचय और अपचय से रहित हैं? गौतम! जीव न उपचय-सहित हैं, न अपचय-संहित हैं, न उपचय-अपचय-सहित हैं वे उपचय और अपचय से रहित हैं।
एकेन्द्रिय-जीव तीसरे पद में सोपचय-सापचय हैं। शेष जीव चारों पदों में वक्तव्य हैं। २२६. भन्ते! सिद्धों की पृच्छा।
गौतम! सिद्ध उपचय-सहित हैं, अपचय-सहित नहीं है, उपचय-अपचय-सहित नहीं है, उपचय और अपचय से रहित हैं। २२७. भन्ते! जीव कितने काल तक उपचय और अपचय से रहित होते हैं?
गौतम! सर्व-काल। २२८. भन्ते! नैरयिक-जीव कितने काल तक उपचय-सहित होते हैं?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका के असंख्यातवें भाग तक। २२९. भन्ते! नैरयिक-जीव कितने काल तक अपचय-सहित होते हैं?
जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका के असंख्यातवें भाग तक। २३०. भन्ते! नैरयिक-जीव कितने काल तक उपचय- और अपचय-सहित होते हैं?
जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका के असंख्यातवें भाग तक। २३१. भन्ते! नैरयिक-जीव कितने काल तक उपचय- और अपचय-रहित होते हैं?
गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः बारह मुहूर्त तक। सभी एकेन्द्रिय जीव सब काल में उपचय- और अपचय-सहित होते हैं। शेष सभी जीव उपचय-सहित भी हैं, अपचय-सहित भी हैं, उपचय-अपचय-सहित भी हैं। इसकी कालावधि-जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आवलिका का असंख्यातवां भाग। अवस्थित रहने का काल विरह-काल (सू. ५/२२२) की भांति वक्तव्य है।
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