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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. १,२ : सू. २५-३२ के मध्य आते हैं। जैसे जम्बूद्वीप की वक्तव्यता कही गई है, उसी प्रकार धातकीषण्ड की वक्तव्यता है। इतना विशेष है कि सारे आलापक इस अभिलाप के अनुसार वक्तव्य है। २५. भन्ते! जिस समय धातकीषण्ड द्वीप के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है, उस समय उत्तरार्द्ध में
भी दिन होता है? जिस समय उत्तरार्द्ध में दिन होता है, उस समय धातकीषण्ड द्वीप में मेरु पर्वतों के पूर्व-पश्चिम भाग में रात्रि होती है?
हां, गौतम! ऐसा ही है यावत् रात्रि होती है। २६. भन्ते! जिस समय धातकीषण्ड द्वीप में मेरु पर्वतों के पूर्व भाग में दिन होता है, उस समय पश्चिम भाग में भी दिन होता है? जिस समय पश्चिम भाग में दिन होता है उस समय धातकीषण्ड द्वीप में मेरु पर्वतों के उत्तर-दक्षिण भाग में रात्रि होती है?
हां, गौतम! यावत् रात्रि होती है। २७. इस प्रकार इस अभिलाप के अनुसार ज्ञातव्य है यावत् भन्ते! जिस समय दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है? जिस समय उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी प्रतिपन्न होती है, उस समय धातकीषण्ड द्वीप में मेरु पर्वतों के पूर्व-पश्चिम भाग में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नहीं होती यावत् आयुष्यमन् श्रमण?
हां, गौतम! यावत् आयुष्मन् श्रमण! २८. जिस प्रकार लवण समुद्र की वक्तव्यता हे, उसी प्रकार कालोद समुद्र की भी व्यक्तव्यता
है, इतनी विशेष है-लवण समुद्र के स्थान पर ‘कालोद' नाम वक्तव्य है। २९. भंते! आभ्यन्तर-पुष्कारार्द्ध में सूर्य उत्तर और पूर्व के मध्य उदित होकर पश्चिम और दक्षिण के मध्य आते हैं। जिस प्रकार धातकीषण्ड की वक्तव्यता है उसी प्रकार आभ्यान्तर पुष्करार्द्ध की भी वक्तव्यता है। विशेषतः यह अभिलाप ज्ञातव्य है। यावत् उस समय आभ्यन्तर-पुष्करार्द्ध में मेरु पर्वतों के पूर्व-पश्चिम भाग में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी नहीं होती। वहां अवस्थित काल होता है। आयुष्यमन् श्रमण ! ३०. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
दूसरा उद्देशक वायु-पद ३१. राजगृह नगर में भगवान् गौतम भगवान महावीर की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भन्ते! ईषत् पुरोवात (पूर्वी वायु), पश्चाद्वात (पश्चिमी-वायु), मन्दवात और महावात चलते हैं?
हां, गौतम! चलते हैं। ३२. भन्ते! पूर्व में ईषत् पुरोवात, पश्चात्वात, मन्दवात और महावात चलते हैं?
हां, चलते हैं?
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