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चौथा शतक
पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा उद्देशक संग्रहणी गाथा
चार विमान, चार राजधानियां, नैरयिक और लेश्या-चौथे शतक में ये दस उद्देशक हैं। १. राजगृह नगर में भगवान गौतम भगवान महावीर की पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले-भंते! देवेन्द्र देवराज ईशान के कितने लोकपाल प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! चार लोकपाल प्रज्ञप्त हैं, जैसे सोम, यम, वैश्रवण और वरुण। २. भंते ! इन लोकपालों के कितने विमान प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! इनके चार विमान प्रज्ञप्त हैं, जैस–सुमन, सर्वतोभद्र, वल्गु और सवल्गु। ३. भन्ते! देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज सोम का सुमन नाम का महाविमान कहां प्रज्ञप्त है? गौतम! जम्बूद्वीप द्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के प्रायः समतल और रमणीय भू-भाग से ऊपर यावत् ईशाननाम का कल्प प्रज्ञप्त है। वहां पांच अवतंसक प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक, जातरूपावतंसक और मध्य में ईशानावतसंक। ४. उस ईशानावतंसक महाविमान के पूर्व में तिरछी दिशा में असंख्य हजार योजन जाने पर देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महाराज सोम का सुमन नाम का महाविमान प्रज्ञप्त है। उसकी लम्बाई-चौड़ाई साढे बारह लाख योजन है। तीसरे शतक में शुक्र की जैसी वक्तव्यता है वैसी ही वक्तव्यता यावत् अर्चनिका तक ईशान की भी है। ५. चारों ही लोकपालों के प्रत्येक विमान का एक-एक उद्देशक अविकल रूप से ज्ञातव्य है,
केवल उनकी स्थिति में नानात्व हैसंग्रहणी गाथा प्रथम दो लोकपालों की स्थिति एक तिहाई भाग कम दो पल्योपम की है। धनद (वेश्रवण) लोकपाल की स्थिति दो पल्योपम की है और वरुण की स्थिति एक तिहाई भाग अधिक दो पल्योपम (२३) की है। लोकपालों के पुत्र-रूप में पहचाने जाने वाले देवों की स्थिति एक पल्योपम की है।
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