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भगवती सूत्र
श. ३ : उ. ७ : सू. २५३-२५८
महाराज सोम से तथा उन सोमकायिक देवों से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अस्मृत और अविज्ञात नहीं होती।
२५४. ये निम्नांकित देव देवेन्द्र देवराज शक्र के लाकपाल महाराज सोम के पुत्र के रूप में पहचाने जाते हैं, जैसे- अंगारक (मंगलग्रह), विकालक ( ज्योतिष्क - देव की एक जाति) लोहिताक्ष (एक महाग्रह), शनिश्चर, चन्द्रमा, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति और राहु ।
२५५. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल की स्थिति त्रिभाग अधिक एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। उसके पुत्र रूप में पहचाने जाने वाले देवों की स्थिति एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। लोकपाल सोम ऐसी महान् ऋद्धि वाला यावत् महान् सामर्थ्य वाला है ।
यम पद
२५६. भन्ते ! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम का वरशिष्ट नाम का महाविमान कहां प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! सौधर्मावतंसक महाविमान के दक्षिण भाग में सौधर्मकल्प में असंख्य योजन जाने पर देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम का वरशिष्ट नाम का महाविमान है। वह साढा - बारह लाख योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला है - सोम के विमान तक जैसा वर्णन है, वैसा ही वर्णन अभिषेक तक ज्ञातव्य है (सू. २५०) राजधानी का वर्णन भी प्रासाद-पंक्ति तक सोम की राजधानी की भांति ज्ञातव्य है ।
२५७. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम की आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में रहने वाले देव ये हैं—-यमकायिक, यमदेवकायिक, प्रेतकायिक, प्रेतदेवकायिक, असुरकुमार, असुरकुमारियां, कन्दर्प, नरकपाल और आभियोगिक । इस प्रकार के जितने अन्य देव हैं, वे सब देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम के प्रति भक्ति रखते हैं, उसके पक्ष में रहते हैं, उसके वशवर्ती रहते हैं तथा उसकी आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में अवस्थित हैं ।
२५८. जम्बूद्वीप द्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिण भाग में जो ये स्थितियां उत्पन्न होती हैं, जैसे डिम्ब (दंगा), डमर, कलह, बोल, मात्सर्य, महायुद्ध, महासंग्राम, महाशस्त्रनिपात, महापुरुषनिपात, महारुधिरनिपात, टिड्डी, आदि का उपद्रव, कुलरोग, ग्रामरोग, मण्डलरोग, नगररोग, शिरोवेदना, अक्षिवेदना, कर्णवेदना, नखवेदना, दन्तवेदना, इन्द्रग्रह, स्कन्दग्रह, कुमारग्रह, यक्षग्रह, भूतग्रह, एकान्तर ज्वर, दो दिन से आने वाला ज्वर, तीन दिन से आने वाला ज्वर, चार दिन से आने वाला ज्वर, चोर आदि का उपद्रव, खांसी, श्वास, शोष, बुढ़ापा, दाह,
कक्षाकोथ, अजीर्ण, पाण्डुरोग, मस्सा, भगंदर, हृदय - शूल, मस्तक - शूल, योनि-शूल, पार्श्वशूल, कुक्षि- शूल, ग्राम-मारि, नगर-मारि, खेट-मारि, कर्बट मारि, द्रोणमुख - मारि, मडम्ब - मारि, पत्तन-मारि, आश्रम - मारि, संवाह-मारि, सन्निवेश- मारि, प्राण-क्षय, जन-क्षय, धनक्षय, बल-क्षय तथा और भी इस प्रकार की अनिष्ट आपदाएं, उन सब देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज यम से तथा उन यमकायिक देवों से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अस्मृत और अविज्ञात नहीं होतो ।
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