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श. ३ : उ. ६,७ : सू. २३९-२४८
भगवती सूत्र २३९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह यथार्थभाव को जानता-देखता है,
अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता? गौतम! उसके इस प्रकार का दृष्टिकोण होता है यह राजगृह नगर नहीं है, यह वाराणसी नगरी नहीं है, यह इन दोनों के अन्तराल में एक महान् जनपदाग्र नहीं है। यह मेरी वीर्य-लब्धि, वैक्रिय-लब्धि और अवधि-ज्ञान-लब्धि है। यह ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम मुझे लब्ध, प्राप्त और अभिसमन्वागत (विपाकाभिमुख) है। यह उसके दर्शन का अविपर्यास है। गौतम! इस अपेक्षा से कहा जा रहा है वह यथार्थभाव को जानता-देखता है, अन्यथाभाव को नहीं जानता-देखता। २४०. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण किए बिना एक महान् ग्रामरूप अथवा नगर-रूप यावत् सन्निवेश-रूप की विक्रिया (निर्माण) करने में समर्थ है?
यह अर्थ संगत नहीं हैं। २४१. भन्ते! क्या भावितात्मा अनगार बहिर्वर्ती पुद्गलों का ग्रहण कर एक महान् ग्राम-रूप
अथवा नगर-रूप यावत् सन्निवेश-रूप की विक्रिया (निर्माण) करने में समर्थ है? हां, समर्थ है। २४२. भन्ते! भावितात्मा अनगार कितने ग्राम-रूपों की विक्रिया करने में समर्थ है ? गौतम! जैसे कोई युवक युवती का हाथ प्रगाढ़ता से पकड़ता है, वही (सू. १९६) वक्तव्यता यावत् भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप में न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है,
और न करेगा। २४३. इसी प्रकार सनिवेश-रूप तक ग्राम-रूप की भांति वक्तव्य है। आत्मरक्षक-पद २४४. भन्ते! असुरेन्द्र असुरराज चमर के आत्मरक्षक-देव कितने हजार प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! उसके दो लाख छप्पन हजार आत्मरक्षक-देव प्रज्ञप्त हैं। उन आत्मरक्षकों का वर्णन-(द्रष्टव्य रायपसेणइयं, सूत्र ६६४) २४५. इस प्रकार सब इन्द्रों के जिसके जितने आत्मरक्षक-देव हैं, वे सब वक्तव्य हैं। २४६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
सातवां उद्देशक लोकपाल-पद २४७. राजगृह नगर में भगवान् की पर्युपासना करते हुए गणधर गौतम इस प्रकार बोले-भन्ते! देवेन्द्र देवराज शक्र के कितने लोकपाल प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! उसके चार लोकपाल प्रज्ञप्त हैं, जैसे-सोम, यम, वरुण और वैश्रवण। २४८. भन्ते! इन चार लोकपालों के कितने विमान प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! इनके चार विमान प्रज्ञप्त हैं, जैसे सन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयज्वल और वल्गु।
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