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श. ३ : उ. ३,४ : सू. १५१-१५७
भगवती सूत्र श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विहार कर रहे हैं। लवणसमुद्र-वृद्धि-हानि-पद १५२. भन्ते! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को
वन्दन-नमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर इस प्रकार बोले-भन्ते! लवणसमुद्र, चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या (उद्दिवा) और पूर्णिमा को अतिरिक्त रूप से क्यों बढ़ता है? क्यों घटता
यहां लवणसमुद्र की वक्तव्यता लोक-स्थिति और लोकानुभाव (जीवा. ३/७२३-७९५)
तक ज्ञातव्य है।
१५३. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है-यह कह भगवान् गौतम संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहार कर रहे हैं।
चौथा उद्देशक भावितात्म-पद १५४. भन्ते! भावितात्मा अनगार वैक्रिय-समुद्घात से समवहत वैक्रिय विमान में बैठकर जाते हुए देव को क्या जानता-देखता है? गौतम! १. कोई अनगार देव को देखता है, विमान को नहीं देखता। २ कोई अनगार विमान को देखता है, देव को नहीं देखता। ३. कोई अनगार देव को भी देखता है, विमान को भी देखता है। ४. कोई अनगार न देव को देखता है और न विमान को देखता है। १५५. भन्ते! भावितात्मा अनगार वैक्रिय-समुद्घात से समवहत वैक्रिय-विमान में बैठकर जाती हई देवी को क्या जानता-देखता है?
गौतम ! १. कोई अनगार देवी को देखता है, विमान को नहीं देखता । २ कोई अनगार विमान को देखता है, देवी को नहीं देखता। ३. कोई अनगार देवी को भी देखता है, विमान
को भी देखता है। ४. कोई अनगार न देव को देखता है और न विमान को देखता है। १५६. भन्ते! भावितात्मा अनगार वैक्रिय-समुद्घात से समवहत वैक्रिय-विमान में बैठकर जाते हुए देवी-सहित देव को क्या जानता-देखता है? गौतम! १. कोई अनगार देवी-सहित देव को देखता है, विमान को नहीं देखता । २ कोई अनगार विमान को देखता है, देवी-सहित देव को नहीं देखता। ३. कोई अनगार देवी-सहित देव को भी देखता है, विमान को भी देखता है। ४. कोई अनगार न देवी-सहित देव को देखता है और न विमान को देखता है। १५७. भन्ते! भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के अन्तर्वर्ती भाग को देखता है? बहिर्वर्ती भाग
को देखता है? गौतम! कोई अनगार वृक्ष के अन्तर्वर्ती भाग को देखता है, बहिर्वर्ती भाग को नहीं देखता है। २. कोई अनगार वृक्ष के बहिर्वर्ती भाग को देखता है, अन्तर्वर्ती भाग को नहीं देखता।
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