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श. ३ : उ. १,२ : सू. ७६-८४
संग्रहणी गाथा
तिष्यक मुनि की तपस्या निरन्तर दो-दो दिन का उपवास, अनशन एक महीने का और दीक्षा - पर्याय आठ वर्ष का था । कुरुदत्त मुनि की तपस्या निरन्तर तीन-तीन दिन का उपवास, अनशन पन्द्रह दिन का और दीक्षा - पर्याय छह महीने का था ।
भगवती सूत्र
विमानों की ऊंचाई, इन्द्रों का परस्पर एक दूसरे के पास प्रकट होना, दर्शन वार्तालाप, करणी, विवादोत्पत्ति तथा सनत्कुमारकी भव्यता आदि विषयों का वर्णन इस उद्देशक में हुआ है।
दूसरा उद्देश
चमर का भगवान को वन्दन - पद
७७. उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था, यावत् परिषद् पर्युपासना करती है। ७८. उस काल और उस समय में असुरेन्द्र असुरराज चमर चमरचञ्चा राजधानी की सुधर्मा सभा में चमर सिंहासन पर चौंसठ हजार सामानिक देवों से (परिवृत था ) यावत् भगवान् के सामने नाट्यविधि का उपदर्शन कर वह जिस दिशा से आया, उसी दिशा में चला गया। असुरकुमार-वर्णक-पद
७९. भन्ते ! इस सम्बोधन के साथ भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना करते हैं, नमस्कार करते हैं, वन्दन - नमस्कार कर इस प्रकार बोले- भन्ते ! क्या इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे असुरकुमार देव रहते हैं ?
गौतम ! यह बात संगत नहीं है।
८०. भन्ते ! इसी प्रकार यावत् सातवीं पृथ्वी के नीचे सौधर्म कल्प के नीचे यावत् भन्ते ! क्या ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी के नीचे असुरकुमार देव रहते हैं ?
यह बात संगत नहीं है।
८१. भन्ते ! तो फिर असुरकुमार देव कहां रहते हैं ?
गौतम! इस एक लाख अस्सी हजार योजन की मोटाई वाली रत्नप्रभा पृथ्वी में असुरकुमार देव रहते हैं। इस प्रकार असुरकुमार देवों की वक्तव्यता है, यावत् वे दिव्य भोगाई भोगों का भाग करते हुए रहते हैं।
८२. भन्ते ! क्या असुरकुमार - देवों की गति का विषय नीचे लोक में हैं?
हां, है ।
८३. भन्ते ! असुरकुमार देवों की गति का विषय नीचे लोक में कितना प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! उनकी गति का विषय अधः सप्तमी पृथ्वी तक है। तीसरी पृथ्वी तक वे गए हैं और जाएंगे।
८४. भन्ते! असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गए हैं और जाएंगे, इसका प्रत्यय क्या है ?
गौतम ! पूर्वजन्म के वैरी की वेदना की उदीरणा करने के लिए अथवा पूर्वजन्म के मित्र की वेदना का उपशमन करने के लिए - इन दो प्रत्ययों से असुरकुमार - देव तीसरी पृथ्वी तक गए हैं और जाएंगे।
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