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श. ३ : उ. १ : सू. ५८-६९
भगवती सूत्र ५८. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान देवेन्द्र देवराज शक्र के पास प्रकट होने में समर्थ है?
हां, वह समर्थ है। ५९. भन्ते! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है?
गौतम! वह आदर करता हुआ भी समर्थ है, अनादर करता हुआ भी समर्थ है। ६०. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान को ठीक सीध में स्थित हो देखने में समर्थ है?
हां, वह समर्थ है। ६१. भन्ते! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है? ___ गौतम! वह आदर करता हुआ समर्थ है, अनादर करता हुआ समर्थ नहीं है। ६२. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान देवेन्द्र देवराज शक्र के ठीक सीध में स्थित हो देखने में
समर्थ है? ६३. भन्ते! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है?
गौतम! वह आदर करता हुआ भी समर्थ है, अनादर करता हुआ भी समर्थ है। ६४. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ आलाप-संलाप करने में समर्थ है?
हां, वह समर्थ है। ६५. भन्ते! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है ?
गौतम! वह आदर करता हुआ समर्थ, अनादर करता हुआ समर्थ नहीं है। ६६. भन्ते! क्या देवेन्द्र देवराज ईशान शक्र देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ आलाप-संलाप करने में समर्थ है?
हां, वह समर्थ है। ६७. भन्ते! क्या वह आदर करता हुआ समर्थ है? अनादर करता हुआ समर्थ है?
गौतम! वह आदर करता हुआ समर्थ है, अनादर करता हुआ भी समर्थ है। ६८. भन्ते! उन देवेन्द्र देवराज शक्र और ईशान के मध्य यह कार्य करणीय है-ऐसा विचार उत्पन्न होता है?
हां, होता है। ६९. ऐसा होने पर वे उसे क्रियान्वित कैसे कर सकते हैं? गौतम ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र के सामने कोई प्रयोजन उपस्थित होता है तो वह देवेन्द्र देवराज ईशान के पास प्रकट होता है और यदि देवेन्द्र देवराज ईशान के सामने कोई प्रयोजन उपस्थित होता है तो वह देवेन्द्र देवराज शक्र के पास प्रकट होता है। ईशान कहता है-हे दक्षिणार्ध-लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज शक्र! इस समय यह कार्य करणीय है। शक्र कहता है-हे उत्तरार्ध-लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज
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