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तीसरा शतक
पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा
चमर की कैसी विक्रिया, चमर का उत्पात, क्रिया, यान, स्त्री, नगर, लोक-पाल, अधिपति, इन्द्रिय और परिषद्-तीसरे शतक में ये दश उद्देशक हैं। उत्क्षेप-पद १. उस काल और उस समय में मोका नाम की नगरी थी-नगर का वर्णन । २. उस मोका नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व दिशाभाग में नन्दन नाम का चैत्य था-चैत्य का वर्णन। ३. उस काल और उस समय में भगवान् महावीर समवसृत हुए। परिषद् ने नगर से निर्गमन किया। परिषद् वापस नगर में चली गई। देवविक्रिया-पद ४. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के दूसरे अन्तेवासी अग्निभूति नामक
अनगार थे। उनका गौत्र गौतम था। उनकी ऊंचाई सात हाथ की थी। यावत् वे भगवान् की पर्युपसाना करते हुए इस प्रकार बोले-भन्ते! असुरेन्द्र असुरराज चमर कितनी महान् ऋद्धि वाला, कितनी महान् द्युति वाला, कितने महान् बल वाला, कितने महान् यश वाला, कितने महान् सुख वाला, कितनी महान् सामर्थ्य वाला और कितनी विक्रिया करने में समर्थ है? गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमर महान् ऋद्धि वाला, महान् द्युति वाला, महाबली, महायशस्वी, महासुखी और महान् सामर्थ्य वाला है। वह चमरचञ्चा राजधानी में चौंतीस लाख भवनावास, चौंसठ हजार सामानिक, तैंतीस तावत्त्रिंशक, चार लोकपाल, पांच सपरिवार पटरानियां, तीन परिषद्, सात सेनाएं, सात सेनापति, दो लाख छप्पन हजार आत्मरक्षक-देव और चमरचञ्चा राजधानी में रहने वाले अन्य अनेक देवों तथा देवियों का आधिपत्य, पौरपत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व (पोषण) तथा आज्ञा देने में समर्थ और सेनापतित्व करता हुआ, अन्य देवों से आज्ञा का पालन करवाता हुआ वह आहत नाट्यों, गीतों तथा कुशल वादक के द्वारा बजाए गए वादित्र, तन्त्री, तल, ताल, त्रुटित, घन और मृदंग की महान् ध्वनि से युक्त दिव्य भोगार्ह भोगों को भोगता हुआ रहता है। वह इतनी महान ऋद्धि वाला, इतनी महान् द्युति वाला, इतने महान् बल वाला, इतने महान यश वाला, इतने महान् सुख वाला, इतनी महान् सामर्थ्य वाला है और इतनी विक्रिया करने में समर्थ है। जैसे कोई युवक युवती का प्रगाढ़ता से हाथ पकड़ता है अथवा गाड़ी के चक्के की नाभि जैसे अरों से युक्त