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श. २ : उ. ४,५, सू. ७७-८०
भगवती सूत्र स्पर्शनेन्द्रिय। प्रथम इन्द्रिय-उद्देशक (पण्णवणा के इन्द्रिय-पद (१५) का प्रथम उद्देशक) ज्ञातव्य है, यावत्७८. भन्ते! अलोक किससे स्पृष्ट है? अथवा कितने कायों से स्पृष्ट हैं ?
गौतम! वह न धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है यावत् न आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है। वह आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है। वह न पृथ्वीकाय से स्पृष्ट है यावत् न अद्धा समय से स्पृष्ट है। वह एक, अजीव द्रव्य का देश, अगुरुलघु, अनन्त अगुरुलघु-गुणों से संयुक्त है और अनन्तवें भाग से न्यून परिपूर्ण आकाश है।
पांचवा उद्देशक परिचारणा-वेद-पद ७९. भन्ते! अन्ययूथिक ऐसा आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं
१. मृत्यु को प्राप्त हुआ निर्ग्रन्थ अपनी देव-रूप आत्मा के द्वारा वहां पर अन्य देवों और अन्य देवों की देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करता, वह अपनी देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा नहीं करता, किन्तु वह अपने ही बनाए हए विभिन्न रूपों से परिचारणा करता है। २. एक जीव एक समय में दो वेदों का वेदन करता है, जैसे स्त्री-वेद का और पुरुष-वेद का। जिस समय वह स्त्री-वेद का वेदन करता है, उसी समय पुरुष-वेद का वेदन करता है। जिस समय वह पुरुष-वेद का वेदन करता है, उसी समस स्त्री-वेद का वेदन करता है। वह स्त्री-वेद के वेदन से पुरुष-वेद का वेदन करता है और पुरुष-वेद के वेदन से स्त्री-वेद का वेदन करता है। इस प्रकार एक जीव भी एक समय में दो वेदों का वेदन करता है, जैसे स्त्री-वेद का और पुरुष-वेद का। ८०. भन्ते! यह इस प्रकार कैसे है?
गौतम! अन्ययूथिक, जो ऐसा आख्यान करते हैं यावत् जीव एक साथ स्त्री-वेद और पुरुष-वेद दोनों का वेदन करते हैं। जो ऐसा कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। गौतम! मैं इस प्रकार
आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता है• १. मृत्यु को प्राप्त हुआ निर्ग्रन्थ महान् ऋद्धि और महान् द्युति से सम्पन्न, महाबली, महान् यशस्वी, महान् सौख्य-युक्त, महान् सामर्थ्य वाले, ऊंची गति वाले और चिरकालिक स्थिति वाले किसी देवलोक में देव-रूप में उपपन्न होता है। वह महान् ऋद्धि से सम्पन्न यावत् दसों दिशाओं को उद्द्योतित और प्रभासित करता हुआ, द्रष्टा के चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय देव होता है। वह अन्य देवों और देवों की देवियों का
आश्लेष कर-कर परिचारणा करता है, अपनी देवियों का आश्लेष कर-कर परिचारणा करता है, किन्तु वह अपने बनाए हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा नहीं करता।
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