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श. १ : उ. ९ : सू. ४२१-४२६
भगवती सूत्र पर-भव के आयुष्य का बन्धन करने से इस भव के आयुष्य का बन्धन नहीं करता। इस प्रकार एक जीव एक समय में एक ही आयुष्य का बन्धन करता है, जैसे-इस भव के आयुष्य का अथवा पर-भव के आयुष्य का। ४२२. भन्ते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। इस प्रकार भगवान् गौतम यावत् संयम
और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण कर रहे हैं। कालासवैश्यपुत्र-पद ४२३. उस काल और उस समय में भगवान् पापित्यीय का परम्परित शिष्य वैश्यपुत्र कालास नामक अनगार जहां भगवान् स्थविर रहते थे, वहां आया। वहां आकर भगवान् स्थविरों से उसने इस प्रकार कहा-स्थविर सामायिक को नहीं जानते, स्थविर सामायिक का अर्थ नहीं जानते। स्थविर प्रत्याख्यान को नहीं जानते, स्थविर प्रत्याख्यान का अर्थ नहीं जानते। स्थविर संयम को नहीं जानते, स्थविर संयम का अर्थ नहीं जानते। स्थविर संवर को नहीं जानते, स्थविर संवर का अर्थ नहीं जानते। स्थविर विवेक को नहीं जानते, स्थविर विवेक का अर्थ नहीं जानते। स्थविर व्युत्सर्ग को नहीं जानते, स्थविर व्युत्सर्ग का अर्थ नहीं जानते। ४२४. उस समय भगवान् स्थविरों ने वैश्यपुत्र कालास अनगार से इस प्रकार कहा
आर्य! हम सामायिक को जानते हैं, आर्य! हम सामायिक का अर्थ जानते हैं। आर्य! हम प्रत्याख्यान को जानते हैं, आर्य! हम प्रत्याख्यान का अर्थ जानते हैं। आर्य! हम संयम को जानते हैं, आर्य! हम संयम का अर्थ जानते हैं। आर्य! हम संवर को जानते हैं, आर्य! हम संवर का अर्थ जानते हैं। आर्य! हम विवेक को जानते हैं, आर्य! हम विवेक का अर्थ जानते हैं।
आर्य! हम व्युत्सर्ग को जानते हैं, आर्य! हम व्युत्सर्ग का अर्थ जानते हैं। ४२५. तब वैश्यपुत्र कालास अनगार ने उन भगवान् स्थविरों से इस प्रकार कहा–आर्य! यदि आप सामायिक को जानते हैं, सामायिक का अर्थ जानते हैं यावत् आर्य! यदि आप व्युत्सर्ग को जानते हैं, व्युत्सर्ग का अर्थ जानते हैं, तो आर्य! आपका सामायिक क्या है? आर्य! आपके सामायिक का अर्थ क्या है? यावत् आर्य! आपका व्युत्सर्ग क्या है? आर्य! आपके व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है? ४२६. तब भगवान् स्थविरों ने वैश्यपुत्र कालास अनगार से इस प्रकार कहा
आर्य! आत्मा हमारा सामायिक है, आर्य! आत्मा हमारे सामायिक का अर्थ है। आर्य! आत्मा हमारा प्रत्याख्यान है, आर्य! आत्मा हमारे प्रत्याख्यान का अर्थ है। आर्य! आत्मा हमारा संयम है, आत्मा हमारे संयम का अर्थ है।