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भगवती सूत्र
श. १ : उ. ५ : सू. २२६-२४१ गौतम! उनके शरीर दो प्रकार वाले प्रज्ञप्त हैं, जैसे-१. भवधारणीय २. उत्तर-वैक्रिय। जो भवधारणीय-शरीर हैं, वे हुंड-संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं। जो उत्तर-वैक्रिय-शरीर हैं, वे भी हुंडसंस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं। २२७. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् हुण्ड-संस्थान में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २२८. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् नैरयिकों के कितनी लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! एक कापोत-लेश्या प्रज्ञप्त है। २२९. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् कापोत लेश्या में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त
होते हैं? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २३०. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् नैरयिक क्या सम्यग्-दृष्टि होते हैं? मिथ्या-दृष्टि होते हैं? सम्यग्-मिथ्या-दृष्टि होते हैं?
वे तीनों ही होते हैं। २३१. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् सम्यग्-दर्शन में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २३२. इसी प्रकार मिथ्या-दर्शन में वर्तमान नैरयिकों के भी सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २३३. सम्यग्-मिथ्या-दर्शन में वर्तमान नैरयिकों के अस्सी भंग वक्तव्य हैं। २३४. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में यावत् नैरयिक क्या ज्ञानी होते हैं अथवा अज्ञानी?
गौतम! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं। सम्यग्-दृष्टि में तीन ज्ञान का नियम है, मिथ्या-दृष्टि में तीन अज्ञान की भजना (विकल्प) है। २३५. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी यावत् आभिनिबोधिक-ज्ञान में वर्तमान नैरयिक क्या
क्रोधोपयुक्त होते हैं? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २३६. इसी प्रकार तीन ज्ञान और तीन अज्ञान में वर्तमान नैरयिकों के भी सत्ताईस-सत्ताईस भंग
वक्तव्य हैं। २३७. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में यावत् नैरयिक क्या मन-योगी होते हैं? वचन-योगी होते हैं? काय-योगी होते हैं?
वे तीनों ही होते हैं। २३८. भन्ते! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में यावत् मनयोग में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं?
सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २३९. इसी प्रकार वचन-योग में वर्तमान नैरयिकों के भी सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २४०. इसी प्रकार काय-योग में वर्तमान नैरयिकों के भी सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २४१. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी में यावत् नैरयिक साकारोपयुक्त होते हैं? अथवा अनाकारोपयुक्त होते हैं?
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