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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३. उधो सर) ते आश्व मिथ्यात, उंधो सर) जीव साख्यात।
तिण आश्व नों रूंधणहार, ते समकित संवर दुवार।।
४. अत्याग भाव इविरत , तांम, जीव तणा माठा परिणाम।
तिण इविरत नें देवें निवार, ते व्रत , संवर दुवार।।
५. नही त्याग्या छे ज्यां दरबां री, आसा वांछा लगे रही ज्यांरी।
ते इविरत जीव रा परिणाम, तिणनें त्याग्यां हुवें संवर आंम।।
६. परमाद आश्व , तांम, ॲ पिण जीव रा मेंला परिणाम।
परमाद आश्व रूंधाय, जब अप्रमाद संवर थाय ।।
७. कषाय आश्रव , आंम, जीव रा कषाय परिणाम।
तिण सूं पाप लागें छे आय, ते अकषाय सूं मिट जाय।।
८. सावद्य निरवद जोग व्यापार, ए पांचूई आश्व दुवार। ___रूंधे भला भुंडा परिणाम, अजोग संवर तिणरो नाम।।
९. ए पांचू आश्व उघाड़ा दुवार, कर्म आवे यां दुवार मझार।
दुवार तो जीव ना परिणाम, त्यांतूं कर्म लागे छे तांम।।
१० .यांरा ढांकणा संवर दुवार, आश्व दुवार ना रूंधणहार ।
नवा कर्म ना रोकणहार, पिण जीव रा गुण श्रीकार।।
११. इमहिज कह्यों चोथा अंग मझारों, पांच आश्व में संवर दुवारो।
आश्रव करमां रो करता उपाय, कर्म आश्व सू लागे छे आय।।
१२. उतराधेन गुणतीसमा माह्यों, पडिकमणा रों फल वतायो।
व्रतां रा छिद्र ढंकायों, वले आश्व दुवार रूंधायों।।