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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २८. जिणरा उदा सूं उतकष्टों क्रोध करें छे, ते उतकष्टा उदें आया छे तांम।
ते उदें आया छे जीव रा संच्या, त्यांरों अणुताणबंधी क्रोध , नांम।।
२९. तिणसुंकायंक थोड़ों अप्रत्याख्यानी क्रोध, तिणसुंकायंक थोड़ों प्रत्याख्यांन।
तिणसुं कांयक थोड़ो छे संजल रों क्रोध, आ क्रोध री चोकड़ी कही भगवान ।।
३०. इण रीतें मान री चोकड़ी कहणी, माया ने लोभ री चोकड़ी इम जांणों। __च्यार चोकड़ी प्रसंगें कर्मी रा नाम, कर्म प्रसंगें जीव रा नाम पिछांणो।।
३१. जीव क्रोध करें क्रोध री परकत सुं, मांन करें छे मान री प्रकत सुं तांम।
माया कपट करें छे माया री प्रकत सूं, लोभ करें , लोभ री प्रकत सूं आंम।।
३२. क्रोध करें तिणसुं जीव क्रोधी कहायों, उदें आइ ते क्रोध री प्रकत कहांणी।
इण हीज रीत मांन माया ने लोभ, यांने पिण लीजों इण हीज रीत पिछांणी।।
३३. जीव हसे छे हास्य री प्रकत उदें सूं, रित अरितरी प्रकत सुंरित अरित वधावें।
भय प्रकत उदें हूआं भय पांमें जीव, सोग प्रकत उदें जीव ने सोग आवें।।
३४. दुगंछा आवें दुगंछा प्रकत उदें सूं, अस्त्री वेद उदें सूं वेदें विकार।
तिणनें पुरष तणी अभिलाषा होवें, पछे वेंतो वेंतो हुवें बोहत विगाड़।।
३५. पुरष वेद उदें अस्ती नी अभिलाषा, निपुसक वेद उदें हवें दोंयां री चाहि।
कर्म उदा सुं सवेदी नाम कह्यों जिण, कर्मा ने पिण वेद कह्या जिणराय।।
३६. मिथ्यात उदें जीव हुवों मिथ्याती, चारित मोह उदें जीव हुवो कुकर्मी।
इत्यादिक माठा माठा , जीव रा नाम, वले अनार्य हिंसाधर्मी।।