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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २. ग्यांनावर्णी ने दर्शणावर्णा, मोहणी अन्तराय , ताम। __जीवरा जेहवा जेहवा गुण विगस्या, तेहवा तेहवा कर्मी रा नांम।।
३. ग्यांनावी कर्म ग्यांन आवा न दें, दर्शणावर्णी दर्शण आवे दें नांहि ।
मोहकर्म जीव में करें मतवालों, अंतराय आछी वस्त आडी छे माहि ।।
४. में कर्म तो पुदगल रूपी चोफरसी, त्याने खोटी करणी करे जीव लगाया।
त्यांरा उदा सूं खोटा खोटा जीवरा नाम, तेहवाइज खोटा नाम कर्म रा कहाया।।
५. यां च्यारूं कर्मां री जूदी जूदी प्रकृत, जूआ जूआ छे त्यांरा नाम।
त्यांसूं जूआ जुआ जीव रा गुण अटक्या, त्यांरो थोड़ो सो विस्तार कहूं छू तांम।।
६. ग्यांनावर्णी कर्म री प्रक्रत पांचे, तिणसूं पांचोंइ ग्यांन जीव न पावें। ___ मत ग्यांनावी मत ग्यांन रे आडी, सूरत ग्यांनावी सुरत ग्यांन न आवें।।
७. अवधि ग्यांनावर्णी अवधि ग्यांन ने रोकें, मनपरज्यावर्णी मनपरज्या आडी।
केवल ग्यांनावर्णी केवल ग्यांन रोकें, यां पांचां में पांचमी प्रकत जाडी।।
८. ग्यांनावर्णी कर्म खयउपसम हुवें, जब पामें छे च्यार ग्यांन।
केवल ग्यांनावी तो खय उपसम न हुवें, आ तो खें हुवां पामें केवल ग्यांन ।।
... ९: दर्शणावर्णी कर्म री नव प्रक्रत छ, ते देखवा में सुणावादिक आडी।
जीव कर देखें आंधा, त्यांमें केवल दर्शणावर्णी सगलां में जाडी।।
नावर्णी कर्म उदें सूं, जीव चषू रहीत हुवें अंध अयांण। शणावर्णी कर्म रे. जोगें, च्यारूं इंद्री री परजाों हांण।।