________________
नव पदार्थ
२. चार कर्म एकान्त पाप हैं और चार कर्म पुण्य और पाप दोनों हैं। पुण्य कर्म से जीव को साता मिलती है, कभी दुःख नहीं होता।
३. पुण्य के अनन्त प्रदेश हैं। वे जब जीव के उदय में आते हैं तो उसको अनन्त सुख प्रदान करते हैं। इसलिए पुण्य के अनन्त पर्याय होते हैं।
४. जब जीव के निरवद्य योग का प्रवर्तन होता है तो उसके शुभ रूप में पुद्गलों का बंध होता है। उन पुद्गलों के गुणानुसार अलग-अलग नाम हैं।
___५. जो कर्म-पुद्गल साता वेदनीय रूप में परिणमन करते हैं और साता रूप में उदय में आते हैं, वे जीव को सुख-साता प्रदान करते हैं, इसलिए उनका नाम 'साता वेदनीय' रखा गया है।
६. जब पुद्गल शुभ आयु में परिणमन करते हैं तो जीव अपने शरीर में दीर्घ काल तक जीवित रहने की इच्छा करता है और सोचता है कि मैं जीता रहूं, मरूँ नहीं, ऐसे कर्म-पुद्गलों का नाम 'शुभ आयुष्य' है।
७. कई देवता और कई मनुष्यों के शुभ आयुष्य होता है जो पुण्य की प्रकृति है। यौगलिक तिर्यंचों का आयुष्य भी पुण्य रूप प्रतीत होता है।
८. जो कर्म शुभ नाम रूप में परिणत होते हैं तथा विपाक अवस्था में शुभ नाम रूप से उदय में आते हैं उनसे अनेक बातें शुद्ध होती हैं। इसलिए जिन भगवान ने इसको 'शुभ नाम कर्म' कहा है।
९. शुभ आयुष्यवान मनुष्य और देवताओं की गति और आनुपूर्वी शुद्ध होती है। कई पंचेन्द्रिय जीव विशुद्ध होते हैं। उनकी जाति भी पुण्य और विशुद्ध होती है।
१०. शुद्ध निर्मल पांच शरीर और इन शरीरों के तीन निर्मल उपाङ्ग ये सब शुभ नाम कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं। सुन्दर शरीर और उपाङ्ग इसी से होते।