SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ : पुन पदार्थ दुहा १. पुन पदार्थ में तीसरो, तिणसूं सुख माने संसार। काम भोग शबदादिक पामें तिण थकी, तिणने लोक जांणे श्रीकार ।। २. पुन रा सुख , पुदगल तणा, काम भोग शबदादिक जांण। ते मीठा लागें छे कर्म तणे वसें, ग्यांनी तों जांणे जेंहर समांन ।। ३. जेंहर सरीर में त्यां लगे, मीठा लागें नींब पांन । ज्यूं कर्म उदें हुवें जीव रे जब, लागे भोग इमरत समांन ।। ४. पुन तणा सुख कारमा, तिणमें कला म जांणो काय। मोह कर्म वस जीवड़ा, तिण सुख में रह्या लपटाय।। ५. पुन पदार्थ तो सुभ कर्म छ, तिणरी मूल न करणी चाहि। __ तिणनें जथातथ परगट करूं, ते सुणजों चित्त ल्याय।। ढाल : ३ (लय रे जीव मोह अनुकम्पा नाणी) ____ पुन पदारथ ओळखों।। १. पुन तों पुदगल री परजाय छे, जीव रे आय लागे तांम रे लाल। ते जीव रे उदें आवे सुभ पणे, तिणसु पुदगल रों पुन छे नाम रे लाल।।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy