SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ५४. जे जे वस्तु नीपजें पुदगल तणी, ते ते सगळी विललाय जी। _त्यांने भावे पुदगल जिणवर कह्या, द्रव्ये तो ज्यूं रा ज्यूं रहें ताहि जी।। ५५. आठ कर्म में शरीर असासता, o नीपना हूआ छै ताहि जी। तिणसूं भाव पुदगल कह्या तेहनें, द्रव्य तो नीपजायों नही जाय जी।। ५६. छाया तावड़ो प्रभा कंत छ, ए सगळा भाव पुदगल जांण जी। वले अंधारो में उद्योत छे, ए पुदगल भाव पिछांण जी।। ५७. हळको भारी सुहालो खरदरो, गोल वटादिक पांच संठांण जी। घड़ा पड़हा में वस्त्रादिक, ए सगळा भावे पुदगल जांण जी।। ५८. घ्रत गुलादिक दसूं विगें, भोजनादि सर्व वखांण जी। वले सस्त्र विवध प्रकार ना, ए सगळा भावे पुदगल जांण जी।। ५९. सइकडां मण पुदगल बळ गया, पिण द्रव्ये तों बळ्यों नहीं अंस मात जी। ए भावे पुदगल उपना हुता, ते भावे पुदगल विणस जात जी।। ६०. सइकडां मण पुदगल उपनां, पिण द्रव्य तो नही उपनो लिगार जी। उपना तेहीज विणससी, पिण द्रव्य नों नही विगाड़ जी।। ६१. द्रव्य तो कदेइ विणसें नही, तीनोइ काल रे माहि जी। उपजें में विणसें ते भाव छ, ते पुदगल री परजाय जी।। ६२. पुदगल ने कह्यों सासतो असासतो, द्रव नें भावे रे न्याय जी। कह्यों , उतराधेन छतीस में, तिणमें संका म आणजो काय जी।। ६३. अजीव द्रव्य ओळखायवा, जोड़ कीधी श्री दुवारा मजार जी। संवत अठारे पचावनें, वैसाख विद पांचम बुधवार जी।।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy