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________________ अनुकम्पा री चौपई ३४९ ५२. यदि श्रावक का पोषण करने में धर्म होता तो देवता भी यह धर्म करते। असंख्य श्रावकों का पोषण करके अपने पाप कर्म को काटते। ५३. असंख्य द्वीप-समुद्रों में असंख्य श्रावक रहते हैं। सम्यग् दृष्टि देवता यदि धर्म का काम समझते तो उनका अवश्य पोषण करते। ५४. श्रावक का खाना-पीना सब अव्रत में कहा गया है। इसलिए समदृष्टि देवता ऐसा कार्य क्यों करेंगे? ५५. तिर्यक् लोक के दो मालिक हैं-शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र। उनका आदेश असंख्य द्वीप-समुद्रों में सर्वोपरि है। ५६. सब द्वीपों और समुद्रों में जीव जीव को खा रहे हैं। यदि जीव बचाने में धर्म हो तो इन्द्र उस मच्छ गलागल को थोड़े से प्रयत्न से ही मिटा देता। ५७. भगवान महावीर ने इन्द्र को कहा होता कि जीव बचाने से धर्म होता है तो दोनों इन्द्र जीवों को बचाते। थोड़ा भी आलस्य नहीं करते। ५८. मत्स्य के मुंह से मत्स्य को छुड़ाकर उसे जीवित बचा लेते और उन बड़े मत्स्यों को भी भूखा नहीं मारते । निर्जीव मत्स्यों का निर्माण कर उन्हें खिला देते। ५९. ऐसा करने से यदि जिन धर्म होता तो भगवान स्वयं ऐसा सिखला देते, इन्द्र को ऐसी आज्ञा देते तथा प्रत्यक्ष रूप में यही स्थापना करते। ६०. जीव को जीवित बचाना यह तो सांसारिक उपकार है। जहां जिनेश्वर देव की किंचित भी आज्ञा नहीं है वहां जरा भी धर्म नहीं है। ६१. षट्कायिक जीवों के शस्त्ररूप जीव को बचाने से वह षट्कायिक जीवों का वैरी हो जाता है। उनका जीना सावध है। उनको बचाने में कोई धर्म नहीं है।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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