SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुकम्पा री चौपई ३४७ ४२. खाना, पीना, आभूषण, वस्त्र आदि सारे गृहस्थ के काम भोग है। जो उनकी वृद्धि करता है, उसके पाप कर्म के बंध का संयोग होता है। ४३. गृहस्थ के समस्त काम-भोग दुःख है, दुःख की खान है। उत्तराध्ययन सूत्र में भगवान ने काम-भोग को किंपाक फल की उपमा दी है। ४४. उन काम भोगों का सेवन धर्म जानकर कराने में उसके पाप कर्म का बंध होता है। सम्यग् दृष्टि देवता उसमें अंशमात्र भी धर्म नहीं मानते। ४५. कुछ अज्ञानी लोग ऐसा कहते हैं, श्रावक का पोषण करने में धर्म है। लड्ड खिलाकर दया पलाने से पाप कर्म कट जाते हैं। ४६. लड्डुओं के बदले में जो उपवास, बेला करते हैं, उनके जीवन को धिक्कार है। लड्ड मोल लेकर जो उनका पोषण करते हैं, उसमें जरा भी धर्म नहीं है। ४७. लड्डुओं के बदले में पौषध करते हैं, उसमें जिनेश्वर देव ने धर्म नहीं कहा है। वे तो पौषध इहलोक के लिए करते हैं। मूर्ख आदमी इसका मर्म नहीं समझता। ४८. इसमें धर्म होता तो सम्यग् दृष्टि देवता अचित्त लड्ड एवं अचित्त पानी पैदा करके श्रावकों को जी भरकर खिलाते। ४९. यावज्जीवन तक अढ़ाई द्वीप के सभी श्रावकों को अचित्त लड्ड आदि द्रव्य खिलाते और पौषध कराकर दया पलाते। ५०. उन्हें हिंसा आदि आरंभ नहीं करने देते तथा श्रावकों के लिए जो कल्पनीय होता वह देवता लाकर देते। यदि इसमें धर्म होता तो उससे देवता नहीं चूकते, खूब लाभ उठाते। ५१. यदि धर्म होता तो देवता श्रावकों को मन चाही वस्तुएं देते। किसी प्रकार की कमी नहीं रखते और न ऐसा करने में विलम्ब ही करते। उनके किसी प्रकार की कमी नहीं दिखाई देती।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy