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________________ अनुकम्पा री चौपई ३४३ २२. द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, मनुष्य और अन्य तिर्यञ्चों को बचाने में यदि देवता धर्म जानता तो सम्यग् दृष्टि देवता स्वयं उसको बचाने का प्रयत्न करता। २३. बाघ, चीते आदि दुष्ट जीव गाय आदि पशुओं की घात करते हैं, उनको भी वह अचित्त वस्तु खिलाकर गाय आदि को खाने से बचा लेता। २४. जीव जीव का भक्षण करता है। उसे अचित्त खिलाकर बचाया जा सकता है। यदि ऐसा करने में धर्म होता है तो देवता यही उपाय काम में लेता। २५. अढ़ाई द्वीप में मनुष्यों के घर-घर में आरम्भ होता है। वे तो जीवों की हिंसा करते हैं। छह ही प्रकार के जीवों का संहार करते हैं। २६. प्रतिदिन एक-एक घर में पृथक्-पृथक् हिंसात्मक प्रवृत्तियां (आरंभ) होती है। वनस्पति का छेदन-भेदन करते हैं। अनंत जीवों की घात करते हैं। २७. घर-घर में दलना, पीसना, पोना (रोटी बनाना), चुल्हा जलाना आदि रूप में छहकाय के जीवों का आरंभ-सभारम्भ होता रहता है। अनंत जीवों का विनाश किया जाता है। २८. कुछ सम्यग् दृष्टि देव होते हैं, उनके पास अपार शक्ति होती है। वे अढ़ाई द्वीप का आरम्भ(हिंसा) मिटाकर अनंत जीवों को बचा सकते हैं। २९. देवता अढ़ाई द्वीप के मनुष्यों की भूख और प्यास को अचित्त अन्न, जल आदि पैदा करके सबको तृप्त कर सकते हैं। ३०-३१. विविध प्रकार के भोजन और विविध प्रकार के पकवान बना सकते हैं। विविध प्रकार के खादिम (मेवे) स्वादिम (ताम्बूल), विविध प्रकार के शीतल पेय। विविध प्रकार के शाक और विविध प्रकार के फल आदि से सब मनुष्यों को मनोज्ञ भोजन देवता अनेक बार करा सकते हैं।
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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