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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २०. जिण रों खांणों पेंणों गेंहणों इविरत में छे,
तिणनें मन माने ज्यूं खवावें पीवावें। वले मांगे जिको तिणनें धन धांन आपें,
वले विवध पणे तिणनें साता उपजावें।
___ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
२१. जिण रों खांणों पेंणों गेहणों इविरत में छे,
तिणनें उपदेस देइ नें परा छुड़ावें। तिणरें ग्यांनादिक गुण घट में घालें,
तिणरी त्रिसणा लाय में परी मिटावें। ____ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥
२२. किण रा वाला काढ़ें किण रा कीड़ा काढ़ें,
वले लटां जूंआदिक काढ़ें छे ताहि। कानसिलाया बगादिक काढ़ें,
घणी साता उपजावें शरीर रें माहि।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
२३. किण रे वाला कीड़ा ने लटां जूआदिक,
शरीर में उपना जीव अनेक। तिणनें बारें काढ़ण रा त्याग करावें,
कहें सरीर बारें काढ़णों नही छे एक।
ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥
२४. ग्रहस्थ भूलों उजाड़ वन में, अटवी ने वले उजड़ जावें। तिणने मारग वताय नें घरे पोहचावें, वले थाका हुवें तो कांधे बेसावें।
ओ तो उपगार संसार तणों छे॥
२५. संसार रूपणी अटवी में भूला ने, ग्यांनादिक सुध मारग वतावें। सावध भार ने अलगों मेलाए, सुखे सुखे सिवपुर में पोहचावें।
ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥