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________________ ३२४ १४. किण रें लाय लागी घर बलें छें तिणमें, कोइ लाय बुझाय त्यांनें बारें काढ़े, नन्हा मोटा जीव बलें लाय मांहि । १५. किण रें त्रिसणा लाय लागी घट भिंतर, उपदेस देइ तिरी लाय बुझावें, १७. कोइ बेटा नें रूड़ी रीत समझाए, भिक्षु वाङ्मय खण्ड- १ घणां रे साता कीधी लाय बुझाय । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥ यांनादिक गुण बलें तिण मांय । रूम रूम में साता दीधी वपराय । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥ १६. कोइ टाबर पाले नें मोटा करें छें, आछी आछी वस्त तिण नें खवाय । धन माल देवें कमाय कमाय । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥ मोटें मंडाण करे परणावें, वले कांम भोग अस्त्रीयादिक खावों नें पीवों, I धन माल सगलोइ देवें छुड़ाय । भली भांत सूं त्याग करावें ताहि । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥ १८. मात पिता री सेव करें दिन रात, वले मन मांन्या भोजन त्यांनें खवावें । वले कावड़ कांधे लीयां फिरें त्यांरी, वले बेहूं टकां रो सिनांन करावें । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥ १९. कोइ मात पिता नें रूड़ी रीतें, भिन भिन कर नें धर्म सुणावें । ग्यांन दर्शण चारित त्यांनें पमावें, कांम भोग शब्दादिक सर्व छुड़ावें । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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