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८.
भिक्षु वाङ्मय खण्ड- १ कोइ मरता जीव नें जीवा वचावें, झाड़ा झपटा करे ओषध देइ तांम । वले अनेक उपाय करे नें तिणनें, मरतों राख्यों साजो कीयो तमांम । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥
९. कोइ मरता जीव नें सूंस करावें, च्यांरू सरणा देइ नें करावें संथारों । ग्यांन ध्यांन माहे परिणाम चढ़ावें, न्यातीलां सूं देवें मोह उतारों । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो ॥
१०. श्रावक नों खांणों पेंणों छें सर्व इविरत में,
वले नव ही जात से परिग्रह इविरत में,
ते सेवे तो सावद्य जोग व्यापारों ।
११. श्रावक नों खांणो पेंणों छें सर्व इविरत में,
तिणनें सेवारें छें कोइ वारूंवारो । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥
१२. कोइ लाय सूं बलता नें काढ़ वचायों,
तलाब माहे डूबा नें बारें काढ़ें,
तिण रों त्याग करावें चढ़ाय वेरागों ।
वले नव ही जात से परिग्रहो इविरत में,
ते छोड़ें छोड़ावें त्यांरें सिर भागो । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥
वले कूओं पड़तां नें झाल वचायों ।
वले उंचा थी पड़ता ने झाले लीयों ताह्यों । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥
१३. जनम मरण री लाय थी बारें काढ़ें, भव कूआ माहि थी काढ़ दे बारें । नरकादिक नीची गति माहे पड़ता नें राखें,
संसार समुद्र थी बारें काढ़ उधारें। ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥