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________________ ३२२ ८. भिक्षु वाङ्मय खण्ड- १ कोइ मरता जीव नें जीवा वचावें, झाड़ा झपटा करे ओषध देइ तांम । वले अनेक उपाय करे नें तिणनें, मरतों राख्यों साजो कीयो तमांम । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥ ९. कोइ मरता जीव नें सूंस करावें, च्यांरू सरणा देइ नें करावें संथारों । ग्यांन ध्यांन माहे परिणाम चढ़ावें, न्यातीलां सूं देवें मोह उतारों । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो ॥ १०. श्रावक नों खांणों पेंणों छें सर्व इविरत में, वले नव ही जात से परिग्रह इविरत में, ते सेवे तो सावद्य जोग व्यापारों । ११. श्रावक नों खांणो पेंणों छें सर्व इविरत में, तिणनें सेवारें छें कोइ वारूंवारो । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥ १२. कोइ लाय सूं बलता नें काढ़ वचायों, तलाब माहे डूबा नें बारें काढ़ें, तिण रों त्याग करावें चढ़ाय वेरागों । वले नव ही जात से परिग्रहो इविरत में, ते छोड़ें छोड़ावें त्यांरें सिर भागो । ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥ वले कूओं पड़तां नें झाल वचायों । वले उंचा थी पड़ता ने झाले लीयों ताह्यों । ओ तो उपगार संसार तणों छे ॥ १३. जनम मरण री लाय थी बारें काढ़ें, भव कूआ माहि थी काढ़ दे बारें । नरकादिक नीची गति माहे पड़ता नें राखें, संसार समुद्र थी बारें काढ़ उधारें। ओ तो उपगार निश्चेइ मुगत रो॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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