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________________ ३०२ भिक्षु वाङ्मय खण्ड - १ ९. कहें भगवंत दीख्या लीयां पछें, न कीयों किंचित परमाद नें पाप । जांणतां नें अजांणतां, कहे दोष न सेव्यों जिण आप ॥ १०. इम कही कही भोला लोकां भणी, न्हांखे छें फंद तिणरो न्याय निरणो जथातथ कहूं, ते सुणजों चित्त १. ४. ५. ढाल - १० माहि । ल्याय ॥ (लय - पाखंड वधसी आरे पांच ....... ) गोसाला नें बचायो वीर सराग थी रे ॥ गोसाला नें वचायो वीर सराग थी रे, तिण माहे धर्म नही लिगार रे । ओ तो निश्चें होणहार टलें नही रे, तिणरो भोला न जांणें मूल विचार रे । कुपातर नें वचायों वीर सराग थी रे, तिणमें म जांणों कोइ कूड रे । संका हुवें तो भगोती रों अर्थ देखनें रे, खोटी सरधा नें कर दों दूर रे ॥ भारीकर्मा जीवां ने समझ पडें नही रे, ते तो कुगुरां रें बदले बोलें कूड रे । तांणातांण में जासी तांणीया रे, वहिती अगाध नंदी रे पूर रे ॥ गोसालो तों अधर्मी अवनीत थो रे, भारीकर्मी कुपातर जीव रे । वले दावानल छें जिण धर्म रो रे, दुष्ट्यां में दुष्टी घणों अतीव रे ॥ भगवंत नें झूठा पारण नें पापीयें रे, तिल नें उखणीयो पापी जांण रे । मिथ्यात पडवजीयो श्री भगवान थी रे, त्यांरी मूल न राखी पापी कांण रे ॥
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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