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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ९. जिणरी बुध , निरमली, ते लेसी न्याय विचार।
सुणे भारीकर्मा जीवडा, तो लडवा में छे त्यार॥
१०. ए सात दिष्टंत धुर सूं चलें, आगें घणों विस्तार।
भिन भिन भवियण सांभलों, अंतर आंख उघाड॥
ढाल:७
(लय - वीर कहे भवियण सुणो.....)
भवीयण जिण धर्म ओळखो॥ १. मूला खवायां मिश्र कहें, ते लगावें हो खोटा दिसटंत एह।
कहें पाप लागों मूलां तणों, धर्म हूवो हो खाधां वचीया एह।
२. कहें कूआ बाव खणावीयां, हंसा हूइ हो तिण रा लागा कर्म।
लोक पीयें कुसले रह्यां, साता पांमी हो तिणरो हूओ धर्म॥
३. इम कहें मिश्र परूपतां, नही संके हो करता बकवाय।
इण सरधा रो प्रश्न पूछीयां, जाब नावें हो जब लोक लगाय॥
४. हिवे सात दिष्टत री थापना, त्यांरी सुणजों हो विवरा सुध वात।
निरणो करजों घट भिंतरे, बुधवंता हो छोड में पखपात॥
५. सो मिनखां ने मरता राखीया, मूला गाजर हो जमीकंद खवाय।
वले कुसले राख्या सो मानवी, काचों पाणी हों त्यांने अणगल पाय॥
६. पोह माह महीने ठारी परें, तिण कालें हों वाजें शीतल वाय।
अचेत परया सों मानवी, मरता राख्या हो त्यांने अन लगाय॥