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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३५. कहें ढांढा खोल वचावसां, पिण श्रावक रें न फेरां हाथ।
एह अग्यांनी जीव री जी, कोइ मूर्ख मांने वात॥
३६. गाडा नीचें आवें डावडों, कहे साधु नें लेंणों उठाय।
श्रावक ने बेंठों करें नही, ओं उंधों पंथ इण न्याय॥
३७. रित वरसाला में
लटां गजायां में
समें कातरा
जी, जीव घणा , ताहि। जी, पडीया मारग माहि॥
३८. साधु बारे नीकल्या जी, जोय जोय मूंकें पाय।
लारें ढांढा देख्या आवतां, पिण साधु न लें उठाय॥
३९. जे बालक लेवें उठाय नें, यां जीवां नें न लें उठाय।
तो उणरी सरधा रे लेखें, उणरें दया नही घट माहि॥
४०. जो बालक ने लेवें उठाय नें, ओर जीव देखी ले नाहि।
इण सरधा रों करजों पारिखों, कोई रखे पडों फंद मांहि॥