SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुकम्पा री चौपई २३३ १५. दावाग्नि लगाना, गांव जलाना आदि अनेक सावद्य कार्य हैं। इन सबको समझा कर छुड़ाए। ऐसे सभी कार्यों की विधि तुम एक जैसी जानो । १६. इस समय कुछ अज्ञानी ऐसा कहते हैं, छह काय के जीवों की साता के लिए हम धर्म का उपदेश देते हैं । एक जीव को समझाने से अनेक जीवों का क्लेश मिट जाता है। १७. छहकाय के जीवों के साता हुई वह धर्म है ऐसा अन्यतीर्थी लोग कहते । उन लोगों ने जैन धर्म का भेद-मर्म नहीं समझा। वे तो मोह कर्म के उदय से भटक गए हैं। १८. अब जो साधु कहते हैं वह सुनें - छहकाय के जीवों के साता कैसे होती है। वे अपने बंधे हुए शुभ-अशुभ कर्म भोगते हैं, उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला है। १९. जिसने छहकाय के जीवों की हिंसा का त्याग किया, उसके मलिन अशुभ-पाप कर्म टल गए। ज्ञानियों की दृष्टि में उनके जन्म मरण रूप संताप मिट गए, यही साता है। २०. साधु उनके लिए तीर्ण- तारक हो गए, क्योंकि साधुओं ने उन्हें अविचल स्थान मोक्ष-गति में पहुंचा दिया, किन्तु छहकाय के जीव तो संसार में ही झूलते रहे । उनके आत्मिक कार्य सिद्ध नहीं हुए। २१. पूर्वकाल में अनन्त तीर्थंकर हुए, उनका वाणी से कभी पार नहीं पाया जा सकता। वे स्वयं तिरे और दूसरों को तारा, परन्तु इससे छहकाय के जीवों के किंचित भी साता नहीं हुई । २२. एक आदमी मरने से स्वयं बच गया। दूसरे ने उसके जीवित रहने का उपाय किया। तीसरा उसके जीवित रहने से हर्षित हुआ । इन तीनों में शुभगति कौन जाएगा ? |
SR No.032415
Book TitleAcharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy