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नव पदार्थ
१२. रंगण : जीव राग-द्वेष रूपी रंग में रंगा रहता है, इसलिए वह मोह में मतवाला रहता है और आत्मा को कलंकित करता है। इससे इसका नाम 'रंगण' है।
१३. हिंडुक : कर्म रूपी झूलने में बैठकर जीव चारों गतियों में झूलता रहता है। कहीं भी विश्राम नहीं पाया। इससे जीव का नाम 'हिंडुक' है।
१४. पुद्गल : पुद्गलों को (आत्म-प्रदेशों में) जगह-जगह एकत्रित कर रखने से जीव का नाम 'पुद्गल' है। पुद्गल में लिप्त रहने से ही संसार की नींव लगी है।
१५. मानव : जीव कोई नया नहीं परन्तु शाश्वत है, इसलिए उसका नाम 'मानव' है। जीव का पर्याय पलट जाता है, परन्तु द्रव्य से वह वैसा का वैसा रहता है।
१६. कर्ता : कर्मों का कर्ता-उपार्जन करने वाला होने से जीव का नाम 'कर्ता' है। कर्मों का कर्ता होने से जीव को आश्रव कहा गया है। इस कर्तृत्व के कारण ही जीव के पुद्गल द्रव्य लगता रहता है।
१७. विकर्ता : कर्मों को बिखेरता है, इसलिए 'विकर्ता' नाम है। यह कर्म बिखेरना ही निर्जरा की करणी है। जीव का उज्ज्वल होना निर्जरा है।
___ १८. जगत् : जीव में एक समय में लोकान्त तक जाने की स्वाभाविक शक्ति पाई जाती है। इस प्रकार अत्यन्त शीघ्र गति से गमन करने वाला होने से जीव को 'जगत्' कहा गया है।
१९. जंतु : जीव जगह-जगह जन्मा है। चौरासी लाख योनियों में वह उत्पन्न हुआ और वहां से निकला है, इसलिए इसका नाम 'जंतु' है।
२०. योनि : जीव अन्य वस्तुओं का उत्पादक है। अपने बुद्धि-कौशल से वह घट, पट आदि अनेक वस्तुओं की रचना करता है। इससे 'योनि' कहलाता है।